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बेटे-बेटी के लालन-पालन में भेद नहीं होना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार तो यह पाप है। इस संसार की जो पहली पांच संतानें हुई थीं, उनमें से तीन बेटियां थीं। मनु-शतरूपा हिंदू संस्कृति के अनुसार मनुष्यों के पहले माता-पिता थे और उनसे जो मैथुनि सृष्टि निर्मित हुई उसमें दो पुत्र- उत्तानपाद और प्रियव्रत तथा तीन बेटियां -आकुति, देवहुति और प्रसूति ने जन्म लिया था। समझदार माता-पिता अब दोनों को एक जैसा पाल रहे हैं, लेकिन इसी के साथ एक जागरूकता और आनी चाहिए। लालन-पालन में भेद न करें, लेकिन दोनों के सामने जो भविष्य में चुनौतियां आने वाली हैं, उस फर्क को उन्हें जरूर समझाएं। बेटियों को एक दिन बहू बनना है, जो सबसे बड़ी चुनौती है।
इस समय की पढ़ी-लिखी बच्चियां अपने वैवाहिक जीवन के बाद के भविष्य को लेकर थोड़ी चिंतित तो हैं पर फिर भी एक बेफिक्री है कि संबंध नहीं जमा तो तोड़ लेंगे। किंतु उनके मां-बाप के लिए तो यह जीवन-मरण का प्रश्न है, इसलिए बच्चों के लालन-पालन में बेटे-बेटी को यह एहसास जरूर कराया जाए कि स्त्री के लिए क्या मायने हैं ससुराल के। पहला तो बदलाव, दूसरा अपेक्षा और तीसरा अपने ससुराल में आत्मनिर्भर होकर बिना कलह के मार्ग ढूंढ़ना।
ये तीन बड़ी चुनौतियां स्त्री के सामने आती हैं। स्त्री जब बहू बनती है तो उसे नए घर में दो बातें नहीं भूलनी चाहिए। योजनाबद्ध तरीके से विनम्रता के साथ सबको जीता जाए। पेट की भूख सही ढंग से यदि मिटा दी जाए, तो दिल जीता जा सकता है, इसलिए अन्न पर माता-बहनों का नियंत्रण किसी भी घर में समाप्त नहीं होना चाहिए। जिस घर में माता-बहनों के हाथ से अन्न का नियंत्रण निकलेगा, उस घर में शांति संदेहास्पद हो जाएगी। इस चुनौती को इसी तरह से समझाया जाए।
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