अगर आप अपने घर में सौभाग्य और समृद्धि चाहते हैं तो वास्तु से जुड़ी इन छोटी-छोटी बातों को अपने घर में अपनाएं। फ्लैट निम्न उपाय अपनाकर इससे लाभ उठा सकते हैं। ऐसा करने से भी जीवन में स्थिरता आती है।
घर की नींव की खुदाई दक्षिण-पूर्व कोने से शुरू होकर दक्षिण-पश्चिम कोने की ओर बढ़ती है। निर्माण दक्षिण-पश्चिम कोने से शुरू होता है और दक्षिण-पूर्व कोने की ओर बढ़ता है। ऐसा करने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।
उत्तर या पूर्व में लॉन, सुंदर पेड़ या फूलों का बगीचा होना चाहिए।
प्लॉट के नैऋत्य कोण में घर बनाएं। सरकारी महकमा ऐसा करने की जहमत नहीं उठाता।
प्लॉट और वास्तु की चारों दीवारें उत्तर और पूर्व की अपेक्षा दक्षिण और पश्चिम में मोटी और ऊंची होनी चाहिए।
वास्तु की दृष्टि से उत्तर और पूर्व में पश्चिम और दक्षिण की तुलना में अधिक खुला क्षेत्र होना चाहिए।
सूर्य की किरणों और ताजी हवा से रहित घर अच्छा नहीं होता और दोपहर के समय घर में स्थित किसी कुएं या जल-स्थल आदि पर सूर्य की किरणें पड़ें तो भी अच्छा नहीं होता। इसका अर्थ है कि प्रात:कालीन सूर्य की किरणें घर में अवश्य प्रवेश करें, जो श्रेष्ठ है।
भवन का निर्माण इस प्रकार करना चाहिए कि भूखंड के चारों ओर खुली जगह हो। यह सफलता को बढ़ाता है।
हमेशा पूर्व की ओर मुंह करके ब्रश करना चाहिए।
क्षोरकर्मा बाल काटना पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके करना चाहिए।
तोते का आना शुभ माना जाता है। उनके आंदोलन में कोई बुराई नहीं है।
अगर बेसमेंट में दुकान या ऑफिस होना जरूरी हो तो उसे पूर्व या उत्तर दिशा में ही लें।
भूखंड के तीनों ओर सड़कें होना शुभ होता है।
घर के दक्षिण या पश्चिम भाग में फर्नीचर रखना बहुत लाभदायक होता है। फर्नीचर को कभी भी उत्तर या पूर्व की दीवार से सटाकर नहीं रखना चाहिए।
गृह प्रवेश के समय वास्तुशंति हवन, वास्तु जाप, कुल देवी-देवताओं की पूजा, बड़ों का सम्मान, ब्राह्मणों और रिश्तेदारों को भोजन कराना चाहिए।
पानी की निकासी उत्तर-पश्चिम, उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा में रखने से कई लाभ मिलते हैं।