बच्चों के लिए : पुण्य का फल
किसी गांव में एक लड़का रहता था। उसका नाम था केसर। वह बहुत ही आलसी था और मेहनत करने को पाप समझता था। इसलिए रात के समय में एक दो घरों में चोरी कर लेता था और जो कुछ हाथ लगता था उसी से अपना और अपने परिवार वालों का पेट भर लिया करता था। जब कभी कुछ हाथ न लगता तो एक पेड़ के नीचे बैठ कर सिर पर हाथ रख कर रोने-चिल्लाने लगता था।
बदकिस्मती से दो तीन दिन तक केसर के हाथ कुछ न लगा। उसने सोचा कि अब मेरे पापों का घड़ा भर चुका है और मुझे कहीं जाकर डूब मरना चाहिए। सुना हैं मरने से पहले इंसान को अपनी इच्छाएं पूरी कर लेनी चाहिए। यह सोचकर केसर ने इधर-उधर से दो-चार रोटियों का सामान जुटाया और चल दिया मरने के लिए।
कुछ दूर चलने पर केसर को एक गड़ा सा तालाब दिखाई दिया तभी उसके पेट में चूहे कूदने शुरु हो गए। तालाब के पास पहुँचकर केसर ने सोचा, ‘पहले रोटी बनाकर खा लेनी चाहिए फिर डूबा जाएगा।
केसर ने रोटी बनाकर खा ली। रोटी खाने के बाद उसे नींद आने लगी। उसने सोचा ‘इतनी दूर से चलकर आया हूँ कुछ देर सो लूं फिर डूबूंगा।’ यह सोचकर केसर वहीं पेड़ की छाया में सो गया।
कुछ देर बाद कौओं की कांव-कांव सुनकर केसर की नींद टूट गई ‘अब तो ये कौए भी मेरे मरने का इन्तज़ार बड़ी बेयब्री से कर रहे हैं ताकि इन्हें मेरा मीठा-मीठा मांस खाने को मिल सके’ यह सोचकर केसर तालाब की ओर चल दिया।
किनारे पर पहुँचते ही केसर ने देखा कि एक रंग-बिरंगी बहुत ही सुंदर सी मछली बिना जल के तड़प रही है। आज तक ज़िंदगी में पाप ही पाप किए हैं क्यों न मरते समय एक पुण्य भी कमा लिया जाए। यदि यमराज जी भी पूछने लगे कि पृथ्वी पर रहकर तुमने क्या अच्छा कार्य किया है? तो कह तो दूंगा कि मरते समय मैंने एक मछली की जान बचाई थी। इतना सोचकर केसर ने उस मछली को उठकर तालाब में डाल दिया।
पानी में पहुँचते ही उस मछली ने एक सुन्दर जल परी का रूप धारण कर लिया। तब उस सुंदर जल-परी ने कहा तुमने मेरी जान बचाकर मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। जो चाहो मांग लो। केसर ने जल परी को शुरु से लेकर अंत तक अपनी सारी कहानी सुना दी और यह भी बता दिया कि उसकी यहां तक मरने की नौबत कैसे आई। फिर सोचकर जल परी से बोला ‘मुझे कोई ऐसी वस्तु दो जिससे मैं धन ही धन प्राप्त कर सकूं और चोरी करने जैसी आदतों को छोड़ दूं।’
जलपरी ने केसर को फावड़ा और कुदाली देकर कहा ‘जाओ इससे जाकर अपनी भूमि पर खेती करो तुम इन्हे जितना अधिक मिट्टी में चलाओगे उतनी ही अधिक फसल होगी। उस फसल को बेचकर तुम जितना चाहे धन प्राप्त कर सकते हो इतना कहकर जलपरी जल में समा गई। केसर ने सोचा यह ज़रूर मेरे पुण्य का फल है। फावड़ा और कुदाली लेकर खुशी खुशी घर आ गया।