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रामभक्त हनुमान के सिंदूर लगाने की कहानी

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कैसी प्रभुप्रीति है नम्रता की मूर्ति, भगवान श्री रामजी के स्नेहपात्र हनुमान जी की।
हनुमान जी ने एक मंगलवार को प्रातः काल माँ जानकी के समीप जाकर कहा- ‘माँ! मुझे भूख लगी है, कुछ खाने को दीजिए।’
माँ सीता ने कहाः- बेटा! मैं अभी स्नान करने जा रही हूँ। स्नान करके फिर तुम्हें मोदक देती हूँ।’

माता के वचन सुनकर हनुमान जी प्रभु श्री राम का नाम जपते हुए माता के स्नान कर लेने की प्रतीक्षा करने लगे। स्नान के बाद माता सीता ने माँग में सिंदूर भरा। माता की माँग में सिंदूर देख हनुमान जी ने पूछाः माँ! आपने यह सिंदूर क्यों लगाया है?’ माँ जानकी ने उत्तर दिया, ‘इसे लगाने से स्वामी की आयु-वृद्धि होती है।

हनुमान साधना के सच्चे नियम 

सिंदूर लगाने से स्वामी की आयु-वष्द्धि होती है। यह जानकर हनुमान जी उठे और अपने सर्वांग में तेल एवं सिंदूर पोत कर राजसभा में पहुँच गए। उन्हें इस स्थिति में देखकर पूरी सभा ज़ोरों से हँस पड़ी। भगवान श्रीरामजी ने मुस्कुराते हुए पूछा ‘हनुमान! आज तुमने सर्वांग में सिंदूर का लेप क्यों लगाया है?’

सरल स्वभाव हनुमान जी ने हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया- ‘प्रभु! माता सीताजी द्वारा तनिक सा सिंदूर माँग में भरने से आपकी आयु में वृद्धि होती है, यह जानकर आपकी आयु में अत्यधिक वृद्धि के लिए मैंने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाया है।’

भगवान श्रीराम हनुमानजी के सरल स्वभाव एवं निर्दोष प्रेम पर मुग्ध हो गए और उन्होंने घोषणा कर दी- ‘आज मंगलवार है। इस दिन मेरे अनन्य प्रीतिभाजन महावीर हनुमान को जो तेल एवं सिंदूर चढाएँगे, उन्हें मेरी प्रसन्नता प्राप्त होगी और उनकी समस्त कामनाओं की पूर्ति होगी।

हनुमान चालीसा

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