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लक्ष्मण और रावण अनसुनी कहानी शायद आपने सुनी हो

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Story: भीषण युद्ध के बाद महापराक्रमी रावण अयोध्यापति राम से हार गया। राम अपने शिविर में लौट आये। घायल रावण युद्धभूमि में पड़ा था। राम के शिविर में विजय की खुशियां छायी थीं

मगर राम खुश नहीं थे। वे सोच रहे थे कि आज धरती से एक वीर ज्ञानी नीतिज्ञ विद्वान सदा के लिए जा रहा है।, इस तपस्वी से कुछ शिक्षा लेनी चाए। उन्होंने भाई लक्ष्मण को बुलाया और कहा कि रावण से कोई शिक्षा ले आओ।

लक्ष्मण के मन में राम की बात बैठी नहीं पर यह अग्रज का आदेश था इसलिए युद्धभूमि में चले आये। यहां खून से लथपथ रावण मौत की घड़ियां गिन रहा था। सोने की चमचमाती लंका स्याह पड़ चुकी थी। चारों तरफ मरघट सा सन्नाटा छाया था। सर्वत्र दमघोटू आवरण पड़ा था फिर भी राम के सीखलाये अनुसार लक्ष्मण साहस करके आगे बढ़ते गये और रावण के समीप पहुंच कर उसे प्रणाम किया और उसके पैरों के पास बैठ गये।

Image Credit : Sagar World

घायल अवस्था में भी रावण मुस्कुराया और उसने लक्ष्मण से आने का कारण पूछां लक्ष्मण बोले- ‘मैं आप जैसे महान विद्वान से कुछ सीखने की आशा से आया हूं।’

‘रावण फिर मुस्कुराया और लक्ष्मण की ओर गौर से देखने लगा। लक्ष्मण सकपका गये। उन्होंने पूछा- ‘क्या आपको अपनी मृत्यु का कोई गम नहीं है?’

‘नहीं’ यह तो हर किसी के लिए निश्चित है किन्तु मुझे दो बातों का दुख जरुर है।
कौन-सी दो बातें? लक्ष्मण ने पूछा।

एक तो यह कि मैं जितने दिन जीया उसके उपयोग में पूरा कर्मठ न रहा। सोचा था कि अपनी प्यारी प्रजा के लिए एक ऐसी स्वर्ण पीढ़ी बनाऊंगा जो लंका से स्वर्ग तक जायेगी। स्वर्ग देखने की इच्छा बहुतों को होती है पर चालाक देवताओं ने इस मार्ग को कितना दुर्गम कर दिया है। मैं यदि सीढ़ियां बनवा देता तो संसार में एक अमिट कीर्ति रह जाती।

तब आपने लगवाई क्यों नहीं? इसमें कठिनाई क्या थी?

कठिनाई? बंधु लक्ष्मण, मैंने अपने जीवन के शब्दकोष में इस शब्द को रखा ही नहीं किन्तु इतने अच्छे कार्य को कल के लिए टालता रहा। तुम सीखने आये हो तो एक बात जान लो कि किसी भी शुभ काम को कल के लिए नहीं छोड़ना चाहिए। भावी बड़ी प्रबल होती है। देखो मेरी एक गलती के कारण क्या से क्या हो गया।

‘कैसी गलती? लक्ष्मण ने पूछा।

रावण का मुख उदास हो गया। कुछ क्षण वह चुप रहा फिर बोला- ‘लक्ष्मण। तुम्हारी भाभी सीता को चुराकर क्या मैंने गलती नहीं की? यह बुरा कार्य इतना आकर्षक लगा कि मैं सब कुछ भूल गया। इस संबंध में मैंने कभी सोच-विचार नहीं किया और खूब जल्दबाजी की। तुम मुझसे दूसरी शिक्षा यह लो कि कोई भी काम करने से पहले स्थिर मन से सोच-विचार जरुर करो। जल्दी का काम शैतान का होता है। सोच-विचार कर किया गया कोई शुभ फल देता है।’

इतना कहते-कहते रावण का पौरूष थरथराया और पुतलियां उलट गयी। शरीर ठंडा पड़ गया। लक्ष्मण की आंखें भर आयीं। रावण की सीख लेकर वह शिविर में लौटे तो राम व्याकुलता से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। रावण की मृत्यु की खबर सुनकर वह भी अपने को नहीं रोक सके। उनकी आंखें भी भीगने लगीं। रावण कैसा शत्रु था जो मरते-मरते भी नीति की दो बातें सीखा गया।

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