क्यों आयुर्वेद के अनुसार गूलर फल एक औषधि है?, जाने इसके कारण
आयुर्वेद अनुसार गुलर कषाय, शितल, मधुर, रक्त पित्त, विपाक में कटू, शुक्र स्तम्भक, मधुमेह, शुलहर, गर्भ रक्षक, नेत्र रोग, बलवर्धक, अतिसार, मूत्र रोग, इन सभी रोगो को जड से नष्ट करणे की ताकत है. गुलर में यह गुण पाये जाते है. टैनिन और दूध में 4 से 7.4, कार्बोहाइडेृड 49, अलब्युमिनायड 7.4, वसा 5.6, रंजक द्रव्य 8.5, भस्म 6.5, आद्रता 13.6, छाल में 14, फास्फोरस व सिलिका वैज्ञानिक मतानुसार गुलर में यह रासायनिक तत्व होते है.
गुलर फल
गुलर फल का एक चमच चूर्ण एक चमच मिश्री के चूर्ण में मिलाकर सुबह शाम नियमित रूप से कुच्छ दिन सेवन करणे से रक्त प्रदर जैसी बिमारी में और अधिक रक्त के तफलिक को दूर करता है. अगर गुदा, नाक, मुह, रक्तस्त्राव होने पर गुलर के या गुलर के पत्तो से निकने वाले दुध को अदा चमच दो चमच पानी में मिलाकर सेवन करणे से इन रोगो को जड से नष्ट कर देता है.
बच्चा अगर उम्र के हिसाब से दुबला पतला हो तो एैसे बच्चे को अदा चमच गुलर का दुध मां के दुध में या गाय के दुध में मिलाकर कुच्छ महिने दो दो चमच सुबह शाम पिलाने से बच्चा बलवान और सुडोल बनेगा. बच्चो के दात मसुडो में तफलिक है एैसे बच्चो को गुलर के पेड की छाल का एक कप पानी में काढा बनाकर वह बच्चा गरारे करणे से दात, मसुडे जैसे रोगो से मुक्ति मिलेगी.
अगर कोई इन्सान पान, सुपारी, गुटखा का तलीन है. एैसे इन्सान के मुह में छाले होने की संभावना होती है. फिर एैसे इन्सान को तिखा खाना खाने पर मुह में जलन होती है. मतलब मुह में छाले होते है एैसे इन्सान को गुलर के पत्तो को सुबह सुबह चबाकर खाने से मुह के छाले ठीक होते है.
हड्डी तुटणे पर और मौच आने पर गुलर की पेड की छाल भीगे हुये गेहू में दोनो को पीसकर उस में देशी गाय के घी में मिलाकर उसे थोडा गर्म करके वह लेप रात्र सोते समय मोच या हड्डी तुटे जगह पर बाधकर रखने से कुच्छ ही दीनो में मोच और हड्डी ठीक होती है.