आस्ट्रेलिया के सवसे खूबसूरत दर्शनीय स्थलों में से एक है ‘केप्टिन कुक कोटेज’
टूरिस्ट प्लेस : अतीत में झाँकने का अपना अलग सुख है। आने बाले कल को सुनहरा बनाने के लिए जरूरी है कि हम गुजरे हुए कल को बार बार देखें। यह बात ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर के तमाम संग्रहालय देखने के बाद और साकार हो उठती है। अतीत की धरोहर को सजा कर प्रदर्शित करने की कला में ऑस्ट्रेलिया की सरकार माहिर है। ऑस्ट्रेलिया का इतिहास करीब 250 साल पुराना है। इस इतिहास को सरकार ने गजब की सुन्दरता के साथ यहां के संग्रहालयों में प्रदर्शित किया है।
आस्ट्रेलिया के दर्शनीय स्थलों में ‘केप्टिन कुक – कोटेज’ एक विलक्षण स्थल है। मेलबर्न के एक विशाल पार्क में स्थित कुक की कुटिया देखकर लगता है कि प्राचीन धरोहर की हिफाजद की प्रेरणा यहाँ से ली जा सकती है।
जेम्स कुक ने की थी ऑस्ट्रेलिया की खोज
केप्टिन कुक के नाम से प्रसिद्ध नौजवान जेम्स कुक ने आस्ट्रेलिया को खोज को थी। जेम्स इंग्लैंड के योकशायर के गाँव ग्रेट एटोन में रहता था और 27 साल की उम्र में रॉयल नेवी में रहते हुए 769 में रहस्य रोमांच से भरपूर लम्बी लम्बी समुद्री यात्राओं के लिए निकल पड़ा। कुक ने अपने जीवन में 3,22000 किलोमीटर की यात्रा कर इस अभियान में ऑस्ट्रेलिया की खोज कर दुनिया के इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया।
कुक का जहाज अप्रेल 770 में ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में समुद्रो किनारे लगा था। 18वीं शताब्दी में इंग्लैंड के राजनीतिक और आर्थिक हालत गंभीर थे। गरीबी के कारण पूरे देश में अपराध बढ़ रहे थे। अपराधियों को जेल में रखने के स्थान कम पड़ने लगे। संकट के इस वक्त में कुक द्वारा खोजी गई नई जमीन इंग्लैंड की सरकार को बेहद पसंद आई। सभी जानते हैं कि इंग्लैंड ने इस स्थान का चुनाव कैदियों को रखने के लिए किया था। भारत में काला पानी नाम से प्रसिद्ध अंडमान-निकोबार द्रीप का प्रयोग भी जेल के रूप में किया गया था। 7857 में ऑस्ट्रेलिया की धरतो ने सोना क्या उगलना शुरू किया, गोरों की तकदीर और ऑस्ट्रेलिया की तस्वीर ही बदल गई। कई दशकों तक ब्रेहिसाब सोना इंग्लेंड पहुँचाया जाता रहा और ऑस्ट्रेलिया के शहरों को सजाया-संवारा गया। ऑस्ट्रेलिया के विकास में मददगार रहे अंग्रेज प्रशासकों की आदम कद प्रतिमाओं को ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न स्थानों पर लगाया गया। ऐसे में आस्ट्रेलिया को खोजने बाले केप्टिन कुक को कैसे भुला दिया जाता। आज मेलबरन शहर में कुक की याद में जो स्मास्क खड़ा है, उसकी सानी पूरी दुनिया में नहीं।
दरअसल, मेलबर्न वासियों को केप्टिन कुक की याद 934 में आई। इंग्लेंड के याकंशायर के गाँव ग्रेट एटोन से कुक के मकान को जस का तस उखाड़ कर मेलबर्न में स्थापित करने की योजना बनाईं गईं। यह मकान कुक के पिता ने बनवाया था। इस योजना पर भारी खर्च आ रहा था। मेलबर्न के एक इतिहास प्रेमी व परोपकारी सर रुस्सेल ग्रीमबेड इस मकान की कीमत चुकाने के लिए तैयार हो गए। आस्ट्रेलिया की सरकार ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई, बल्कि जो सहयोग बन पडा, देने का वायदा किया । इंग्लैंड में जेम्स कुक के बंशजों को मकान की कीमत अदा कर दी गई और फिर ईट-पत्थरों के मकान को इग्लैंड से उखाड़ कर मेलबर्न लाने की योजना बनी।
इंग्लैंड के इंजीनियरों की मदद से कुक के छोटे से दो मंजिल मकान की ईटों को सावधानीपूर्वक अलग- अलग किया गया। मकान के विभिन्न हिस्सों पर नंबर डाले गए ताकि इन्हें फिर से जोड़ने में दिक्कत न हो। इसके बाद इन्हें 253 कटिनतों में बंद कर पानी के जहाज पर लादा गया और फिर इन्हें लन्दन से मेलबर्न लाया गया। इन कटिनरों में सावधानो पूर्वक कॉटेज के चारों ओर जमीन में लगी खूबसूरत फुलबारी को भी उखाड़ कर रखा गया। आज यह मकान मेलबर्न के खूबसूरत फिटजरॉय पार्क में बिना किसी रद्देबदल के जस का तस खड़ा है।
इंग्लैंड में ।8 वीं शताब्दी के मकानों की बनावट आज से एकदम भिन्न थी। मकान के चारों ओर फुलवारी और ऐसे पेड़-पौधे होते थे जो किसी रोग के उपचार में काम आते थे। हैरत की बात यह है कि कुक को कॉटेज को इंट, पत्थर ही नहीं, फुलवारी भी यहाँ इंग्लैंड से लाकर रोप दी गई है। मजेदार बात यह है इस कॉटेज के बगीचे में लगे कई फूलों वाले पौधे पूरे मेलबर्न में किसी अन्य स्थान पर दिखाई नहीं देते।
यह कॉटेज पर्यटकों को बेहद लुभा रही है। यह कॉटेज 8 वो शताब्दी इंग्लेंड की जीबन शैली के दर्शन कराती है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह कि सरकार और यहां के वाशिंदे मेलबर्न केफिटजरॉय गार्डन में खडी कुक की काटेज के जरिये इस शानदार देश के जनक को श्रद्धा सुमन अपिंत कर रहे हैं। साथ ही अपने असीम प्रेम को भी दर्शा रहे हैं।
ऑस्ट्रेलिया को खोजने वाले केप्टिन कुक को इससे अधिक उपयुक्त श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है !
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