रानी लक्ष्मी बाई की एकता को दर्शाती कहानी – मंदिर मस्जिद
अंग्रेज़ सैनिकों ने कई दिनों से झांसी के किले की घेरा बंदी कर रखी थी। पर रानी लक्ष्मीबाई और उसके वीर सैनिकों के सामने उनकी एक भी न चलने पायी थी। किले का फाटक बंद था। झांसी को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लेने का अंग्रेज़ों का सपना, सपना ही बना हुआ था। झांसी के राजा गंगाधर राव के मृत्यु के पश्चात अंग्रेज़ों ने अपनी कूटनीति के कारण उनके गोद लिए पुत्र को राजा नहीं माना। नीति के अनुसार जिन राज्यों का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता था उसे अंग्रेजी साम्राज्य में शामिल कर लिया जाता था। अंग्रेजों ने झांसी के लिए भी इसी नीति का सहारा लिया और गंगाधर राव के दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी नहीं माना। पर रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों की इस नीति को नहीं माना। उसने अंग्रेज़ों की अधीनता स्वीकार नहीं की और अपनी स्वतंत्रता के लिए विद्रोह कर दिया।
अंग्रेज़ किसी भी कीमत पर झांसी को हड़पना चाहते थे। जब छल से काम नहीं चला तो बल का प्रयोग करना चाहा, और किले की घेराबंदी कर दी, बार-बार रानी को आत्म सम्र्पण कर देने के लिए कहते पर रानी ने कह दिया, ‘जब तक सांस है तब तक आत्म सम्र्पण नहीं करुंगी। अपनी आज़ादी के लिए लड़ती रहूंगी।’ झांसी का बच्चा बच्चा मातृभूमि के लिए प्राण देने को तैयार था। घमासान युद्ध चल रहा था। अंग्रेज़ी फौजें किले पर गोलाबारी कर रही थीं। दोनों तरफ के सैनिक हताहत हो रहे थे किले पर रखी तोपें भी आग उगल रही थीं। झांसी के वीर सपूतों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे।
रानी की सेना का एक तोपची गौस खां बड़े धैर्य और उत्साह से किले की चार दीवारी पर रखी तोपों का संचालन कर रहा था। उसकी तोप आग के शोले उगल रही थी, जिसमें अंग्रेज सैनिक बुरी तरह झुलस रहे थे। दिन ढलने लगा था झांसी के सैनिकों की वीरता और धुंआधार गोलाबारी से अंग्रेजी सेना में खलबली मच गयी और वे भागने लगे। किले से कुछ ही दूरी पर सामने एक मस्जिद और उसके बगल ही एक मंदिर था, भागते हुए अंग्रेज़ों ने इस मस्जिद और मंदिर की शरण लेनी चाही। क्योंकि वे जानते थे कि भारतीय अपनी धर्मान्धता के कारण इन पर हमला नहीं करेंगे। बहुत से अंग्रेज मस्जिद और मंदिर में घुस गये।
गौस खां ने एक बार अल्लाह का नाम लिया और तोप का मुंह मस्जिद की तरफ घुमा दिया। अगले ही पल मस्जिद पर धड़ाधड़ गोले गिरने लगे। जरा देर में ही तमाम अंग्रेज सैनिकों के साथ पूरी मस्जिद मलबे का ढेर हो गयी।
पुनः गौस खां ने अपनी तोप का मुंह मंदिर की तरफ घुमाया गोला डाला पर दागने से पहले उसके हाथ रुक गये। रानी दूर खड़ी सब देख रही थी। गौस के पास आकर कहा, ‘गौस, तुम रुक क्यों गये?’
गौस ने विनम्रता से कहा, ‘रानी साहिबा, दुश्मन मंदिर में घुस गया है और मंदिर पर कैसे गोला बरसाया जा सकता है?’
‘मातृभूति की रक्षा के लिए जब मस्जिद का बलिदान किया जा सकता हो तो मंदिर का क्यों नहीं?’ कहते हुए रानी ने स्वयं तोप दाग दी।
फिर तो गौस ने मंदिर से निकलकर एक भी अंग्रेज को भागने नहीं दिया। सबकी वहीं समाधि बना दी।
उसी समय एक गोली सनसनाती हुई आई और गौस खां के सीने में उतर गयी। गौस खां लड़खड़ाया पर गिरने से पहले तोप दाग दी, और वह अंग्रेज टुकड़े-टुकड़े होकर हवा में बिखर गया। जिसने गोली चलाई थी।
गौस खां अपनी तोप के पास ही गिरकर शहीद हो गया।
रानी ने कहा, ‘झांसी के वीर सपूत तेरा ये बलिदान बेकार नहीं जायेगा।’
लेकिन जहां गौस खां जैसे देशभक्त थे वहीं गद्दार भी तो थे, जिनकी गद्दारी के कारण रानी को अन्त में मजबूर होकर किला छोड़कर भागना पड़ा।