सेवा दुश्मनों को दोस्त बनाती है, सेवा से संबंधित 5 मूल्यवान पाठ पढ़ें

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किसी भी कमजोर, असहाय और संकटग्रस्त व्यक्ति की मदद या सेवा करना मानव स्वभाव है। हम सब किसी न किसी की सेवा करते हैं, लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि सेवा किसकी और कैसे की जाए। किसी की सेवा करने का सही तरीका क्या है? क्या सेवा के लिए पैसा सबसे जरूरी चीज है या यूं कहें कि पैसे से की गई सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है? मानव सेवा को ईश्वर की सेवा क्यों कहा जाता है?

इन सभी प्रश्नों के उत्तर जो हमें सभी संतों और महापुरुषों से मिलते हैं, उससे यह सार निकलता है कि सेवा मनुष्य का मूल स्वभाव है, जो कहता है कि आप भीतर से सुखी, समृद्ध और संतुष्ट हैं। सेवा करने से ईश्वर की कृपा तो बरसती है, पर स्वयं भी परम संतोष का अनुभव होता है। सेवा के लिए धन की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन सबसे बड़ी आवश्यकता समय और भक्ति की है। सच्ची भावना से की गई सेवा ही सच्ची सेवा है। सेवा के बारे में 5 प्रेरक वाक्य पढ़ें।

सेवा मनुष्य का स्वभाव है। सेवा ही उनके जीवन का आधार है। मानवता की सेवा से बढ़कर कोई कार्य नहीं है।

सेवा हृदय और आत्मा को शुद्ध करती है। सेवा से ज्ञान की प्राप्ति होती है और यही मानव जीवन का वास्तविक लक्ष्य है।

किसी भी कमजोर, बीमार और पीड़ित व्यक्ति की सहायता और सेवा करना मनुष्य का मुख्य कर्तव्य है। इसके लिए धन का होना आवश्यक नहीं है बल्कि संकीर्ण जीवन को छोड़कर गरीबों के साथ एक होना आवश्यक है।

जीवन में सबसे अच्छी सेवा तब होती है जब आप किसी की मदद करते हैं और बदले में वह आपको धन्यवाद दे सकता है।

सेवा वह सीमेंट है जो एक विवाह को आपसी प्रेम और आजीवन भरोसे के बंधन में बांधती है। जिन पर किसी बड़े आघात का कोई असर नहीं होता है

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