1 जुलाई से शनि मंगल का समसप्तक योग, गुरु पर वक्री शनि का प्रभाव, प्राकृतिक आपदा की संभावना
वैदिक ज्योतिष में शनि, मंगल और राहु को पाप ग्रह और बृहस्पति को न्याय का स्वामी माना गया है। शनि भले ही अशुभ ग्रह हो लेकिन यह न्याय का भी ग्रह है। 1 जुलाई से चरागाहइसके बाद के दशकों में एक विशेष प्रकार का संयोजन घटित हो रहा है। इस समय शनि देव अपनी मूल त्रिकोण राशि कुम्भ में मजबूती से विराजमान हैं और 17 जून से वक्री भी हो गये हैं। वहीं शनि के शत्रु मंगल 1 जुलाई को अग्नि तत्व सिंह में प्रवेश करेंगे। जिससे शनि मंगल समसप्तक योग बनेगा। सिंह और कुम्भ भी शत्रु राशियां हैं इसलिए यह योग देश के लिए अच्छा नहीं रहेगा।
बृहस्पति राहु से एक और विशेष योग बना है। इस समय राहु बृहस्पति को पीड़ित कर रहा है और शनि की मेष राशि पर नीच दृष्टि है। ज्योतिष में बृहस्पति को न्यायालय का महत्वपूर्ण शासक माना जाता है, ऐसे में इस समय सुप्रीम कोर्ट ऐसे मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट कर सकता है, जिसका सीधा असर देश की जनता पर पड़ेगा। चूंकि राहु धार्मिक उन्माद का कारण है, ऐसी स्थिति में जनता कुछ गलतफहमियों का शिकार हो सकती है और किसी बड़ी हिंसा को जन्म दे सकती है।
1 जुलाई से 16 अगस्त तक की इस अवधि में मंगल और राहु पर शनि की दृष्टि रहेगी, जिससे न केवल धार्मिक उन्माद हो सकता है, बल्कि देश में अत्यधिक वर्षा भी हो सकती है। मंगल और शनि का यह संसप्तक योग पहाड़ियों पर भूस्खलन और भूकंप की भी संभावना पैदा करेगा।