पोंगल के तीसरे दिन मनाया जाता है जल्लीकट्टू, क्यों खास है यह परंपरा? जानिए इससे जुड़ी खास बातें
इस बार पोंगल का त्योहार 15 जनवरी से 18 जनवरी तक मनाया जाएगा. इन 4 दिनों तक हर दिन अलग-अलग परंपराओं का पालन किया जाएगा। जल्लीकट्टू भी इन्हीं परंपराओं में से एक है। यह एक खतरनाक परंपरा है, जिसमें खूंखार सांडों को लोग पकड़ लेते हैं। इस खेल में कई लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और कई की मौत भी हो जाती है। जल्लीकट्टू की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। आगे जानिए जल्ली कट्टू से जुड़ी कुछ खास बातें…
पोंगल का अर्थ और महत्व
पोंगल का त्योहार साल के शुरू में फसल पकने पर मनाया जाता है। तमिल भाषा में पोंगल का मतलब उबालना होता है। पोंगल को दक्षिण भारत में नए साल की शुरुआत माना जाता है। पोंगल का त्योहार 4 दिनों तक मनाया जाता है। तीसरे दिन जल्लीकट्टू का खेल शुरू होता है। इस खेल के तहत एक के बाद एक खतरनाक सांडों को छोड़ दिया जाता है, जो इन सांडों को काबू में कर लेता है उसे विजेता माना जाता है। जल्लीकट्टू शब्द कालीकट्टू से लिया गया है। काली का अर्थ है सिक्का और कट्टू का अर्थ है टाई। पहले के समय में, एक बैल के सींगों में सिक्कों का एक बंडल बांधा जाता था और बैल को वश में करने वाले को इनाम के रूप में वह बंडल दिया जाता था।
बैल को भगवान शिव का वाहन माना जाता है
दक्षिण भारत में बैल को भगवान शिव का वाहन माना जाता है। इसे यहाँ विशेष सम्मान दिया जाता है क्योंकि इसका उपयोग कृषि कार्यों के लिए भी किया जाता है। कई अवसरों पर बैलों की पूजा की जाती है। उनके निधन पर उनके परिवार के सदस्यों की तरह शोक मनाया जाता है और उनका अंतिम संस्कार किया जाता है। गांव के लोगों को मृत्यु भोज दिया जाता है। कुछ लोग बैल मंदिर भी बनाते हैं।
ऐसा विश्वास है
पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहा जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार भगवान शिव के वाहन का नाम मट्टू बलद है। एक बार शिवाजी ने उन्हें पृथ्वी पर मनुष्यों को सन्देश देने के लिए भेजा, लेकिन मट्टू बलद सारी बात भूल गए और पृथ्वीवासियों को गलत बातें कह डालीं। इससे शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने मट्टू को श्राप दिया कि वह अब पृथ्वी पर रहकर खेतों की जुताई करेगा।