रसोई का अंतर
सरदार पटेल एक बार संत विनोवा जी के आश्रम गये जहां उन्हे भोजन भी खाना करना था । आश्रम की रसोई में उत्तर भारत के किसी गांव से आया कोई साधक भोजन व्यवस्था से जुडा था। सरदार पटेल को आश्रम का विशिष्ठ अतिथि जानकर उनके सम्मान में साधक ने सरदार जी से पूछा लिये कि आप के लिये रसोई पक्की अथवा कच्ची । सरदार पटेल इसका अर्थ न समझ सके तो साधक से इसका अभिप्राय पूछा तो साधक ने अपने आशय को कुछ और स्पष्ठ करते हुये कहा कि वे कच्चा खाना खायेगे अथवा पक्का यह सुनकर सरदार जी ने तपाक से उत्तर दिया कि कच्चा क्यों खायेंगे पक्का ही खायेगे । खाना बनने के बाद जब पटेल जी की थाली में पूरी कचैरी जैसी चीजें आयीं तो सरदार पटेल ने सादी रोटी और दाल मांगी तो वह साधक उनके सामने आकर खडा हो गया और उन्हें बताया गया कि उन्ही के निर्देशन पर ही तो पक्की रसोई बनायी गयी थी। इस घटना के बाद ही पटेल उत्तर भारत की कच्ची और पक्की रसोई के अंतर को समझ पाये।