centered image />

Motivational story: सोने की जलेबी – कैसे लालची पड़िंत का सच आया सामने !!!

0 1,718
Join Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now

Motivational story:  एक धनी व्यक्ति था । उसकी माँ बूढी़ हो चुकी थी, उसकी अंतिम इच्छा जलेबी खाने कि थी। पर वह खाने से पहले ही दुनिया से चल बसी । इस पर उस धनी व्यक्ति को बहुत ही पश्याताप हुआ ।

उसने सोचा क्यों न सारे ब्राम्हणों को दान में , जलेबी का दान किया जाए ।तब उसने, सारे ब्राम्हणों को भोजन के लिए आमंञित किया और उसने ब्राम्हणों को अपनी माँ की अतिंम इच्छा बताई ।इसमें से एक ब्राम्हण अति लालची था। तो उसने कहाँ,” सेठजी अगर आपकी माँ की यही अतिंम इच्छी थी तो आप हमें , सोने की जलेबी बनाकर दान में देदो, तो आपकी माँ की आत्मा को शांति मिलेगी।”

इस पर सेठजी ने कहाँ,” अगर ऐसा ही है तो मैं, तुरंत आपको सोने की जलेबी बनाकर आपके घर पहुँचा देता हूँ।,”

सेठजी का नौकर बहुत समझदार था। वह ब्राम्हण की बात का मतलब और उसकी लालसा को समझ गया था।

और उसने तुरंत अपनी सोच से उसी ब्राम्हण को उसके घर बुलावा भेजा की , “मेरी माँ ” भी भगवान को प्यारी हो गई हैं। और उनकी अंतिम इच्छा पूरी करना हैं ।

इस पर ब्राम्हण ने सोचा की, अगर सेठजी का नौकर है तो सेठजी ने इसे बहुत तनख्वाह देते होंगे और इसके पास भी अच्छा धन होगा ।

इस पर ब्राम्हण ने नौकर का निमंत्रण स्वीकार किया और भोजन के लिए उसके घर को चला गया ।

भोजन पश्चात जैसे ही दक्षिणा मांगी तो नाैकर गरम-गरम लोहे की सलाखों को अग्नि में सेंक रहा था । तब ब्राम्हण ने पूछा। इस पर नौकर ने कहाँ की, “मेरी माँ की अंतिम इच्छा थी , मैं इस सलाखें से अपने आपको कुछ यातनाएँ दूँ , ताकि मेरी माँ ने कुछ कर्म ही ऐसे किए थे। तो वो बुरे कर्म धोना चहती थी,पर वह एक अपघाती मृत्यु को प्राप्त हो गयी ।”

इस पर ब्राम्हण वहा से भागने लगा ।इस पर नौकर ने कहाँ ,”आपको भी पहले यह लोहे की सलाखें से यातना सहने पडेगी।” तब ब्राम्हण ने उसे क्षमा मांगी तब नौकर ने कहा,”तो ठीक हैं ,वो सोने की जलेबी, सेठजी से ली थी, वो वापस लौटाओं ।” उस पर ब्राम्हण ने वह लौटा दी और सेठजी को सारी बाते सुनाई ।

इस पर सेठजी ने कहाँ,” जाओ उस नौकर को बुलाओं ।”

अन्य नौकरों द्वारा, उसे बुलाया गया । सेठजी ने कहाँ ,” तुम्हें अगर सोने की जलेबी चाहिए थी तो मुझे कह देते । ” तो नौकर ने सारी कहानी कह सुनाई , उस लालची ब्राम्हण की ।

तब सेठजी की समझ में आया और उस ब्राम्हण को भी अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने सोने की जलेबी भी वापस कर दी ।

धनी होने के ये मतलब नहीं कि किसी पे भी विश्वास किया जाए और सोचना ही छोड दें ।

और ऐसे वफादार नौकर भी मिलना मुश्किल हैं इस युग में ।

Join Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now
Ads
Ads
Leave A Reply

Your email address will not be published.