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विनय

राहो को मंजिल नहीं एक हमसफ़र की तलाश जो आधे अधूरे बिखरे हुए सपनों को उड़ान दें

पता है विनय, कल एक तो सर्दी जुकाम, ऊपर से काम करके थक गयी थी| सोचा थोड़ी देर आराम ले लूँ, तभी वॉचमैन ने चार बजे वापस पानी छोड़ा था, पर थकान की वजह से मैं नहीं भर पाई| सोचा सुबह जब रोज की तरह आठ बजे छोड़ेगा तब भर लेंगे। सोना की बात सुन, विनय…