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हल से ही निकलेगा समस्या का हल

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वर्तमान समय में हमारी समस्या यह है, कि हम जो रसायन आधारित/ बाजार आधारित खेती कर रहे हैं ,उससे खेती में लागत बढ़ रही है , और आय कम होती जा रही है। फसल उत्पादन में लगने वाली लागत को कम किए बिना, आय को बढ़ाया जाना संभव नहीं है।हम यह भली-भांति जानते हैं, कि फसलों का अच्छा उत्पादन मृदा के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों पर ही निर्भर करता है। फसलों की अच्छी पैदावार लेने के लिए भूमि में उर्वरता का निरंतर बने रहना आवश्यक है। भूमि में वायु संचार का होना ,और भूमि में पानी को रोकने और सूखने की क्षमता का बने रहना भी आवश्यक है ।साथ ही भूमि में नमी और जीवांश कार्बन की उपस्थिति में

मित्र सूक्ष्म जीवों की सक्रिय अवस्था में रहना भी आवश्यक है।

वर्तमान समय में हमारे द्वारा फसल उत्पादन करने के लिए, खेती में जो रासायनिक उर्वरकों, फसल सुरक्षा रसायनों और खरपतवार नासी का जो प्रयोग किया जा रहा है , उससे हमारी भूमि में रहने वाले मित्र जीव -जंतु और सूक्ष्म जीव मर गए है। भूमि मे जीवांश कार्बन स्तर घट रहा है । साथ ही फसल उत्पादन भी रसायन युक्त प्राप्त हो रहा है। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। भारी कृषि यंत्रों (ट्रैक्टर) से सामान्यतः 3 या 4 इंच गहरी जुताई होने के कारण भूमि में नीचे कड़ी सतह बन जाती है। जिस कारण भूमि में वायु संचार कम हो जाता है। और भूमि में पानी को रोकने और सोखने की क्षमता भी घट जाती है। भूमि में नीचे कड़ी सतह बन जाने के कारण फसलों की जड़ों का विकास प्रभावित होता है। जिस कारण फसलें भूमि से अपनी आवश्यकतानुसार , पानी और पोषक तत्वों को प्राप्त नहीं कर पाती ।जिसका सीधा प्रभाव फसलों के उत्पादन पर पड़ता है।

यदि हम हल- बैल से खेती करेंगे, तो सबसे पहले हमें बैलों की आवश्यकता होगी । बैलों की प्राप्ति के लिए हमें गौ वंश पालन करना होगा । यदि हम ऐसा करते हैं , तो इससे हमें छुट्टा पशुओं की समस्या से भी निजात मिलेगी। गाय और बैलों से हमें गोबर प्राप्त होगा, जो भूमि की उर्वरता को निरंतर बनाए रखने के लिए भूमि की अहम खुराक है। गाय से हमें दूध की प्राप्ति होगी ।और दूध से घी और मट्ठा भी प्राप्त होगा । एक तरफ जहां घी हमारे स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्य वर्धक है ,तो वहीं दूसरी तरफ मट्ठा हमारी फसलों में लगने वाले कीट एवं रोगों से बचाने में सहायक होगा। अपने खेतों की जब हम हल- बैल से जताई करेंगे , तो यह जुताई लगभग 6 से 7 इंच की गहराई तक हो जाएगी। जिससे भूमि में नीचे बनी कड़ी सतह को तोड़ा जा सकेगा। जिससे पौधों की जड़ें भूमि में नीचे तक जाकर अपनी आवश्यकतानुसार भूमि से पानी और पोषण प्राप्त कर सकेंगी । गहरी जुताई होने से मिट्टी में नीचे छिपे हानिकारक कीट /रोगों के कीटाणु और रोगाणु भूमि की ऊपरी सतह पर आ जाएंगे। जिनमें से कुछ तो सूर्य की तेज धूप से नष्ट हो जाएंगे और कुछ को पक्षी खा जाएंगे। भूमि में वायु संचार बढ़ेगा । भूमि में रहने वाले मित्र जीव- जंतु और सूक्ष्म जीवो की संख्या में बढ़ोतरी होगी। भूमि में जीवांश कार्बन भी बढ़ेगा। भूमि में पानी को रोकने और सूखने की क्षमता भी बढ़ेगी। इसके साथ -साथ कीट एवं रोगों के प्रति भूमि और फसलों में प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी। गाय और बैल से प्राप्त गोबर और फसल अवशेषों का प्रयोग करके भूमि की उर्वरता को निरंतर बनाए रखा जा सकेगा। भूमि के भौतिक ,रासायनिक और जैविक गुणों में अवश्य सुधार आएगा। फलस्वरूप फसल उत्पादन में लागत घटेगी, और उत्पादन बढ़ेगा। और जो फसल उत्पादन प्राप्त होगा, वह रसायन मुक्त होगा।

 

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