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करवा चौथ – पूजा विधि, समय, सामग्री और कथाएं जाने के लिए पढ़िए

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सुहागनों के लिए सबसे बड़ा और महत्वकारी त्यौहार है करवा चौथ यानी पति की लम्बी आयु के लिए रखे जाने वाले व्रत का शुभ दिन होता है। चंद्रमा रात्रि में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। साथ ही साथ इससे लंबी और पूर्ण आयु की प्राप्ति होती है। गौरी और गणेश की परंपरानुसार भक्तिभाव से पूजा करती हैं। नैवेद्य में फल, मेवे या मिठाई रखी जाती है। पूजा शुरू करते समय गौरी को रोली लगा कर गीली रोली खुद सुहागिनें अपने माथे पर लगाती हैं और माँग में सिंदूर भी भरती हैं। हाथ में चावल या गेहूँ के तेरह दाने लेकर करवा चौथ की कथा कहते या सुनते हैं। कथा समाप्ति पर सासुजी को करवा देते हुए आशीर्वाद लिया जाता है। यदि सास नहीं हैं, ऐसे समय घर की और कोई बुजुर्ग महिला सदस्य को यह बायना दिया जाता है। विवाहित लड़कियों के पीहर से करवे भेजने की भी परंपरा है। रात्रि चंद्रमा निकलने पर छलनी की ओट से उसे देखकर अर्घ्य देकर पति से आशीर्वाद लिया जाता है। इसके बाद संयुक्त रूप से भोजन कर के अपना व्रत खोला जाता है।

यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। सामान्य रूप से इस व्रत को निर्जल ही रखा जाता है। ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’ कह कर करवा चौथ के व्रत का प्रारंभ किया जाता है। शाम को 4 बजे से ही पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है। पूजास्थल सजाते हैं, सुशोभित पत्ते पर पीली मिट्टी से बनी गौर माता अंबिका को बिठाया जाता है। ऐसे ही गणेश जी की मूर्ति बना कर गौर माता के बगल में बायीं ओर बिठाते हैं। गौर माता को लाल कपड़े से ढक कर, रोली की बिंदी लगाते हैं।

करवा चौथ पूजा मुहूर्त = 5:43 to 6:59

समय = 1 घंटा  16 मिनट

चाँद का समय = 8:51

कथाएं

कहते हैं कि इस व्रत की शुरुआत शिव पार्वती के यहाँ से हुई। शिव जी ने पार्वती को इस व्रत का महत्व समझाया था। द्वापर युग में द्रौपदी ने कृष्ण भगवान जी से इस करवा चौथ के व्रत के बारे में पूछा था। उसके उपरांत इंद्रप्रस्थ गाँव में वेदशर्मा और लीलावती की बेटी वीरावती ने यह व्रत पहली बार किया। उसी समय से आज तक यह व्रह सुहागिनें करती आ रही हैं। महाभारत के युद्ध के समय कृष्ण भगवान जी ने द्रौपदी को यह व्रत करने को कहा था जिससे अर्जुन कौरवों को युद्ध में पराजित कर अपना राज्य वापस पा सकें।

करवा चौथ की अनेक रोचक कहानियाँ हैं। एक कहानी में कहा जाता है कि बहुत समय पहले एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। बहन सभी भाइयों की बड़ी लाडली थी। उसे खाना खिलाए बिना कोई भी भाई खाना नहीं खाता था। शादी के बाद एक बार यही बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। एक दिन जब शाम को भाई काम पर से लौटे तो बहन को व्याकुल पाया। बहन उनके साथ खाना खाने को तैयार नहीं थी। बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह चंद्रमा देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खाना खाएगी।

छोटे भाई से अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और उसने दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख दिया। दूर से देखने पर वह चतुर्थी के चाँद की ही तरह लगता था। घर आकर उसने अपनी लाडली बहन से कहा कि चाँद निकल आया है। तुम अर्घ्य देकर भोजन कर सकती हो। बहन चाँद को अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ गई। पहला टुकड़ा मुँह में डालते ही उसे छींक आ गई। दूसरा निवाला मुँह में डाला तो उसमें बाल निकल आया और तीसरे निवाले को हाथ में ही लिया था कि उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिला। वह एकदम घबरा गई।

यह सब देख कर उसकी भाभी ने उसे सच्चाई बताई और समझाया कि करवा चौथ का व्रत गल़त तरीके से टूटने के कारण देवता नाराज़ हो गए हैं। सच्चाई जान लेने पर साहूकार की बेटी करवा ने निश्चय किया कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिला कर रहेगी। एक साल तक वह पति के शव की देखभाल करती शव पर उगने वाली सुईनुमा घास को एकत्रित करती रही।

एक साल बाद करवा चौथ के दिन उसकी सभी भाभियों ने करवाचौथ का व्रत रखा। जब भाभियाँ उसे आशीर्वाद देने आईं तो उसने प्रत्येक भाभी से ‘मुझे फिर से सुहागन बना दो’ का वर देने का आग्रह किया पर हर भाभी अगली भाभी की तरफ़ इशारा कर के चल दी। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी की बारी आई तो उसने बताया कि सबसे छोटे भाई की वजह से करवा का व्रत टूटा है अत: उसकी पत्नी ही मृत पति को जीवित करने की शक्ति रखती है।

अंत में छोटी भाभी उसकी तपस्या को देख कर प्रसन्न हुईं और अपनी छोटी अँगुली चीरकर उसमें से अमृत की एक बूँद करवा के पति के मुँह में डाल दी। करवा का पति श्रीगणेश – श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठा। इस प्रकार ‘हे श्री गणेश की माँ गौरी, जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का होने वरदान आपसे मिला है वैसा ही सब सुहागिनों के मिले।’ ऐसा कहते हुए यह कथा पूरी की जाती है।

एक और कथा इस प्रकार है– एक समय करवा नामक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे एक गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह अपनी पत्नी को करवा – करवा कह कर पुकारने लगा।

उसकी आवाज़ सुनकर उसकी पत्नी आई और मगर को कच्चे धागे से बांध दिया। मगर को बांधकर वह यमराज के पास पहुँची और शिकायत के स्वर में कहने लगी– ‘हे भगवन, मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। इस अपराध में मगर को आप अपने पास नरक में ले जाएँ।’
यमराज ने कहा ‘मगर की आयु तो अभी शेष है इसलिए मैं उसे नहीं मार सकता।’

करवा को गुस्सा आ गया, उसने कहा‘अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो मैं आपको श्राप देकर नष्ट कर दूँगी।’
यमराज पतिव्रता स्त्री के तेज के सामने नतमस्तक हो गए। करवा के पति को दीर्घायु का वरदान मिला और मगर को यमपुरी भेज दिया गया। इसी श्रद्धा के साथ करवा चौथ के पूजन में सुहागनें कामना करती हैं कि ‘हे करवा माता, जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।’

महत्त्व के बाद बात आती है कि करवा चौथ की पूजा विधि क्या है? किसी भी व्रत में पूजन विधि का बहुत महत्त्व होता है। अगर सही विधि पूर्वक पूजा नहीं की जाती है तो इससे पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है। तो आइये जानते हैं करवा चौथ की पूजन सामग्री और व्रत की विधि-

करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री

कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे।
सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का  विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।

करवा चौथ पूजन विधि

प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।

व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।

व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-

प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’

घर के मंदिर की दीवार पर गेरू से फलक बनाकर चावलों को पीसे। फिर इस घोल से करवा चित्रित करें। इस रीती को करवा धरना कहा जाता है।

शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसार पर बिठाए।

माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।

भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें।

सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें।

जब रात्री को चंद्रमा निकल आये तब चंद्रमा को अर्घ्य देवें व ‘ॐ शिवायै नमः’ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः’ से चंद्रमा का पूजन करें तथा छननी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें।

सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें।

चंद्रदर्शन के बाद अपने से बडों यानी सासु, ससुर, जेठ, जेठानियां, पति व अन्‍य बडे-बुजुर्गों के चरण स्‍पर्श कर आशीर्वाद प्राप्‍त करें।

अन्‍त में पूजा समापन के बाद बडों को भाेजन कराने के बाद अन्‍त में स्‍वयं भोजन ग्रहण कर व्रत काे पूर्ण किया जाता है।

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