इस राजपूत राजा को हराने के लिए बाबर की सेना ने एक ही रात में काट डाला था पूरा पहाड़
वैसे तो भारत में कई ऐसे किले और गढ हैं जो अपने आप में न जाने कितनी ही इतिहास से जुड़ी कहानियों को समेटे हुए है. इन्हीं में से एक चंदेरी का किला आज भी राजपूतों के शौर्य और राजपुतानियों के जौहर की गाथा गाता है. इतिहास प्रसिद्ध चंदेरी का युद्ध 6 मई, 1529 ई. को मुग़ल बादशाह बाबर एवं राजपूतों के मध्य लड़ा गया था.
उस समय चंदेरी का प्रसिद्ध दुर्ग मेदनीराय के अधिकार में था, जिस पर काफी समय से बाबर की नजर थी. खानवा युद्ध के बाद बाबर इसकी तरफ बढ़ा. बाबर ने मेदनीराय पर धावा बोला, लेकिन मेदनीराय ने किले का फाटक बंद कर दिया.
इल किले का बाबर के लिए काफी महत्व
कहा जाता है यह किला बाबर के लिए काफी महत्व का था इसलिए उसने चंदेरी के तत्कालीन राजपूत राजा से यह किला माँगा. बदले में उसने अपने जीते हुए कई किलों में से कोई भी किला राजा को देने की पेशकश भी की. परन्तु राजा चंदेरी का किला देने के लिए राजी ना हुआ. तब बाबर् ने किला युद्ध से जीतने की चेतावनी दी.
दरअसल नगर के सामने 230 फ़ीट ऊंची चट्टान पर चंदेरी का दुर्ग बना हुआ था. यह स्थान मालवा तथा बुंदेलखंड की सीमाओं पर स्थित होने के कारण से महत्वपूर्ण था. चंदेरी का किला आसपास की पहाड़ियों से घिरा हुआ था इसलिए ये ये बेहद सुरक्षित किला माना जाता था.
राजा मेदनीराय ने संधि करने से किया इनकार
बाबर कई प्रस्तावों के बाद भी मेदनीराय ने संधि करने से मना कर दिया. खानवा में बाबर की ताकत का सामना कर चुके मेदनी राय खंगार और उनके वीरों ने मुग़लो के सामने झुकना स्वीकार नहीं किया बाबर के प्रलोभनों को नकार कर मेदनी ने बाबर से युद्ध करना स्वीकार किया.
किले तक पहुंचना नहीं था आसान
गुस्से से बोखलाए बाबर ने किले का घेरा जारी रखा. दरअसल बाबर की सेना में हाथी तोपें और भारी हथियार थे जिन्हें लेकर उन पहाड़ियों के पार जाना बेहद दुष्कर था और पहाड़ियों से नीचे उतरते ही चंदेरी के राजा की फौज का सामना हो जाता. कहा जाता है की बाबर निश्चय पर दृढ था और उसने एक ही रात में अपनी सेना से पहाडी को काट डालने को कहा.
बाबर का सेना ने एक ही रात में काट डाला पहाड़ी को
यकीन करना मुश्किल है लेकिन कहा जाता है कि बाबर की सेना ने एक ही रात में एक पहाड़ी को ऊपर से नीचे तक काट कर एक ऐसी दरार बना डाली जिससे हो कर उसकी पूरी सेना और हाथी और तोपें ठीक किले के सामने पहुँच गयी(आज भी वह रास्ता टूटे किले की बुर्जों से दिखता है जिसे गौरी ने एक ही रात में पहाडी को कटवा कर बनाया था तथा उसे ‘कटा पहाड़’ या ‘कटी घाटी’ के नाम से जाना जाता है).
मेदनीराय ने स्वीकारी चुनौती
मेदनीराय ने जब सुबह अपने किले के सामने पूरी सेना को देखा तो दंग रह गया. लेकिन राजपूत राजा ने बिना घबराए अपने सिपाहियों के साथ बाबर की विशाल सेना का सामना करने का निर्णय किया.
बोखलाए बाबर ने किले पर चारों ओर से इतनी जोर का हमला किया कि राजपुतानियों ने अपनी अस्मत बचाने के लिए जौहर किया और राजपूत केसरिया बाना पहन मैदान में कूद पड़े और वीरता पूर्वक लड़कर सब के सब वीरगति को प्राप्त हुए और किले पर बाबर का अधिकार हो गया. मध्य युगीन इतिहास में चंदेरी का जौहर अब तक के इतिहास का सबसे विशाल जौहर माना जाता है.