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आयुर्वेदिक घरेलु उपाय

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आज आयुर्वेदिक घरेलु उपाय ईस स्तम्भ मे अनेक घरेलू नुस्खे बताने जा रहा हूँ जो बहुत से हम अपने जीवन मे प्रयोग कर रहेँ हैँ कुछ के बारे मे सुना है तो कुछ को किसी किताब या अखबार मेँ लिखा पढा है ,यूँ जानिये कि ईन के किसी भी पहलू से हम अनजान नहीँ हैँ। मगर थोङे बहुत कम समय व अल्प ज्ञान के चलते हम ईनका उपयोग नही कर सके या हर किसी के मन मे ईनके प्रती किसी प्रकार कि संका भी रही होगी । मगर सच यह है कि हमारे जिवन मे ईन कि महत्वपूर्ण भूमिका है अत:ईनका लाभ अवश्य उठाना चाहिये।

आप अपनी सेहत बनाने की सोच रहे हैं तो सबसे पहले पेट साफ करने की जरूरत है। पेट में कब्ज रहेगा तो कितने ही पौष्टिक पदार्थों का सेवन करें, लाभ नहीं होगा। भोजन समय पर तथा चबा-चबाकर खाना चाहिए, ताकि पाचन शक्ति ठीक बनी रहे, फिर पौष्टिक आहार या औषधि का सेवन करना चाहिए।

यदि व्यक्ति चैत में गुड़, बैसाख में तेल, जेठ में यात्रा, आषाढ़ में बेल, सावन में साग, भादों में दही, क्वाँर में करेला, कार्तिक में मट्ठा अगहन में जीरा, पूस में धनिया, माघ में मिश्री और फागुन में चना, ये वस्तुएँ स्वास्थ्य के लिए कष्टकारक होती हैं। जिस घर में इनसे बचा जाता है, उस घर में वैद्य कभी नहीं आता क्योंकि लोग स्वस्थ बने रहते हैं।

आचार्य चरक ने कहा है कि पुरुष के शरीर में वीर्य तथा स्त्री के शरीर में ओज होना चाहिए, तभी चेहरे पर चमक व कांति नजर आती है और शरीर पुष्ट दिखता है।हम यहाँ कुछ ऐसे पौष्टिक पदार्थों की जानकारी दे रहे हैं, जिन्हें किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक के लोग सेवन कर लाभ उठा सकते हैं और बलवान बन सकते हैं-

पोषण के बारे में आर्युवेद की राय-

आर्युवेद में मानते है कि हर एक भोज्य पदार्थ का गुण-प्रभाव होता है। भोज्य पदार्थ शरीर के लिए अच्छे, हानिकारक या उदासीन हो सकते हैं। यह उन चीज़ों के गुण,व्यक्ति- प्रकृती मौसम और स्थानीय पर्यावरण पर निर्भर करता है।

सात धातु-

आर्युवेद कहता है कि सात बुनियादी तत्व मिल कर शरीर की धातु बनाते हैं। ये हैं 1-रस (अन्नरस), 2-रक्त (खून), 3-मॉंस (पेशियॉं), 4-मेदा (वसा), 5-अस्थि (हडि्डयॉं), 6-मज्जा और 7-शुक्र। खाने की अलग-अलग चीज़ें अलग-अलग धातुओं को विशिष्ट ढंग से प्रभावित करती हैं। (आज की चिकित्सीय समझ के अनुसार इस तरह का वर्गीकरण और अवधारणाएँ काफी अजीब लग सकतीं हैं)।

शरीर के गठन में तीन तरह के दोष – शरीर के गठन में तीन तरह के दोष 1-वात, 2-पित्त 3-कफ की प्रवृति होती है। हॉलाकि ये दोष नही बल्कि शरीर गठन का स्वरूप है।

शरीर के गठन में पॉंच मूल तत्व यानि पंच महाभूत – ये पॉंच मूल तत्वों- यानि पंच महाभूत यानि 1-हवा, 2-आग, 3-पानी, 4-धरती और 5-आकाश के विशिष्ट गठजोड़ों के मिलन के कारण होती है। आहार और कुछ एक गतिविधियों के कारण ये दोष बढ़ या घट सकते हैं। इनके बढ़ने या घटने से गड़बड़ियॉं और बीमारियॉं हो जाती हैं। हर व्यक्ति का शारीरिक गठन एक या ज़्यादा दोषों से प्रभावित होता है।

खाने की चीज़ें शरीर में दोषों को कम या ज़्यादा करते हैं- खाने की सभी चीज़ें कुछ हद तक इन दोषों को कम या ज़्यादा करते हैं। जैसे कि

चावल और दूध कफ बढ़ाते हैं,

भुनी हुई मूँगफली वात बढ़ाती है।

आम और पपीता पित्त बढ़ाते हैं।

परन्तु इन सबका असर किसी भी व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्ति या दोषक गठन से बदल जाता है। ये अवधारणाएँ बहुत लोकप्रिय हैं रुग्णहितके लिये पहले इनका ध्यान रखना चाहिए। उपयुक्त आहार तय करने से पहले कसी भी व्यक्ति की दोष प्रकृति पहचानना लाभदायक होता है। आर्युर्वेद के अध्याय में आप दोषों के बारे में और पढ़ेंगे।

ठण्डा और गर्म-

लोग मानते हैं कि खाने की कुछ चीज़ें गर्म (ऊष्ण) होती हैं और कुछ ठण्डे (शीत)। यह आर्युवेद की इस मजसे मेल खाता है कि खाने की अलग-अलग चीज़ों में शीतोष्ण असर होते हैं। इसका खाने की चीज़ के तपमान से कुछ लेनादेना नहीं होता परन्तु यह शरीर पर उनके असर से सम्बन्धित होता हे। इस लिए खाने की कुछ चीज़ें जिनमें जलन होती है, पसीना आता हे या प्यास लगती है ऊष्ण कहलाते हैं। दूसरों में इनसे उलटे असर होते हैं।

भोजन में छ प्रबल (रस) होते हैं – भोजन में छ प्रबल (रस) होते हैं जो प्रभावित हैं। ये छ: रस हैं- 1-मधुर (मीठा), 2-तीखा (काटु), 3-कटू (चरपरा), 4-अम्ल (खट्टा), 5-लवण (नमक युक्त), 6-कशाया (कसैला)।

भोज्य पदार्थ जिनमें प्रबल मधुर रस होता है वो शरीर के लिए काफी उपयोगी और पोषक होते हैं (जैसे – अनाज, दालें, दूध और शहद)। फलों में भी मधुर व अम्ल रस होता हे और फल शरीर के लिए अच्छे होते हैं। लवण, कशाया और काटू रसों से और अधिक विशिष्ट असर होते हैं। ये रस एक हद तक शरीर के लिए ज़रूरी होते हैं। परन्तु बहुत अधिक मात्रा में लेने पर ये नुकसान पहुँचाते हैं। उदाहरण के लिए मिर्च से आँख, नाक, श्वसनी और पेट से स्राव बहने लगते हैं। इनसे कफ कम होता है। चरपरी चीज़ों जैसे मिर्च, चटनी और काली मिर्च से हम इसका अनुभव कर सकते हैं।

कशाया पदार्थ, कसैले होते हैं जैस कि आंवला और हर्र हर्र पाउडर को दॉंत साफ करने में इस्तेमाल करते हुए हम कसैला स्वाद महसूस कर सकते हैं। यह साथ जोड़ने,सुखाने और सख्त बनाने के लिए असरकारी है। लवण यानि नमक युक्त चीज़ों से पाचक रस स्रावित होते हैं इनसे खानेमें स्वाद बढता हे। लेकिन ज़्यादा नमक खाने से त्वचा और बाल सूखे हो जाते हैं, बाल झड़ने लगते हैं और बुढ़ापा जल्दी आता है। इससे रक्तचाप बढनेका भी धोखा है। अधिकांश पौधों की पत्तियॉं तीखी यानि कड़वी होती हैं और उनमें एलकालॉएड मूलतत्व होते हैं ये कम मात्रा में तो दवाई का काम करते हैं और ज़्यादा मात्रा में ज़हर का। इसीलिए मनुष्यों को इनका स्वाद पसन्द नहीं आता। पाचकता में कुछ चीज़ें गुरू चीज़ें हैं मुश्किल से पचती हैं गोश्त, मटन चावल, दूध, काले चने सेसम बंगाली चने । इन्हें कम या मध्यम मात्रा में लेना चाहिए। और पाचकता में कुछ चीज़ें (लघु) चीज़ें हैं आसानी से पचती हैं मूँग, लस्सी, बकरी का दूध, शहद, गन्ने का रस, तरबूज आदि लघु चीज़ें हैं। इनका सेवन खुलकर किया जा सकता हे। ये खासकर बच्चों, बीमार लोगों और बूढ़े लोगों के लिए यह समस बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनका पाचन तंत्र बहुत मज़बूत नहीं होता।

खाने की स्निग्ध और सूखी चीज़ें – खाने की कुछ चीज़ें, उनमें होने वाले तेल और नमी के कारण, मुलायम और चिकनाई वाली होती हैं। इन्हें स्निग्ध कहते है। और कुछ जिनमें तेल और नमी नहीं होती वो सूखी कहते है। सभी अनाज और दाले रूक्ष होती हैं इसलिए उनके साथ स्निग्ध चीज़ों जैसे घी या तेल, लहसून, प्याज़ सब्ज़ियों और ताजे फलों को लेना ज़रूरी होता है। रूक्ष पदार्थ पाखाने को कड़ा बनाते हैं और स्निग्ध पदार्थ इसे मुलायम करते हैं। यह बहुत आम अनुभव है कि चने के आटे (बेसन) से बनी चीज़ें बहुत ज़्यादा खाने से पाखाना कड़ा हो जाता है। सूखी चीज़ें वात दोष बढ़ाती हैं। मुलायम और चिकनाई प्रदान करने वाली चीज़ें कफ बढ़ाती हैं।

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1 Comment
  1. VIKRAMSINGH says

    WITH OUT EXSIZE WE HAVE HAELTHY KEEPING

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