जानिए प्रभु राम की मृत्यु कैसे हुई ? आपको हैरान कर देगी वजह |
अगर हम भगवान् राम के जीवन की बात करें तो बता दें कि उन्होंने पृथ्वी पर पूरे 10 हजार से भी ज्यादा वर्षो से भी ज्यादा राज किया है. राम भगवान् ने अपनी जीवन में कई ऐसे काम किये हैं जो हिन्दू धर्म को एक गौरव भरा इतिहास दिया है. भगवान् राम राजा दशरथ के सबसे बड़े बेटे थे और उनका विवाह सीता जी से हुआ था. अपनीं पत्नी की रक्षा करने के राम जी ने राक्षसों के राजा रावण को भी मारा था.
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एक बार की बात है जब एक एक वृद्ध संत भगवान राम के दरबार उनसे मिलने आये और उनसे अकेले में बात करने का निवेदन दिया. उस संत की आज्ञा मानते हुए भगवान् राम इन्हें अकेले बात करने के लिए एक कक्ष में ले गए. और उन्होंने अपने द्वार पर छोटे भात लक्ष्मण को खड़ा दिया था और कहा कि किसी को अंदर न आने दे अगर किसी ने इस चर्चा को भंग करने की कोशिश की तो उसे मृत्यु दंड मिलेगा. अपने पूजनीय भाई की आज्ञा का पालन करते हुए लक्षमण बाहर पहरा देने लगे. वो संत और कोई नहीं बल्कि विष्णु लोग से भेजे गए काल देव थे. जो भगवान् राम को यह बताने आये थे कि धरती पर भगवान् राम का जीवन पूरा हो चुका है अब उन्हें अपने लोक वापस जाना होगा.
जब काल देव और भगवान् राम के बीच बात चल रही थी तो तभी द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए और उन्होंने भगवान् से बात करने के लिए अंदर जाने का निवेदन किया लेकिन भगवान् राम की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण से उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया. लक्ष्मण के मना करते ही ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए और उन्होने पूरी अयोध्या को श्राप देने का कहा. अब लक्ष्मण को चिंता होने लगी और वो समझ नहीं पाए आखिरकार उन्हें अपने भाई की आज्ञा के विरुद्ध जाना पड़ा. अगर वो ऐसा नहीं करते तो ऋषि दुर्वासा श्री राम समेत पूरी अयोध्या को श्राप दे देते. उन्हें पता था कि अगर वो श्री राम के विरुद्ध गए तो उन्हें मृत्यु दंड भुगतना होगा लेकिन भगवान् राम के सोचते हुए उन्होंने उनकी आज्ञा के विरुद्ध जाना सही समझा.
जब लक्ष्मण कक्ष में पहुचे तो उन्हें देखकर भगवान् राम धर्म संकट में पड़ गए और मजबूरी में उन्होंने उन्हें मृत्यु दंड देने की बजाय उन्हें देश और राज्य से निकल जाने को कहा क्योंकि उस समय यह दंड भी मृत्यु के समान माना जाता था. लक्ष्मण भगवान् राम के बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे इसलिए उन्होंने दुनिया छोड़ने के फैसला लिया और सरयू नदी के अंदर जाते ही वह अनंत शेष के रूप में बदल गए और विष्णु लोक लौट गए.
अपने भाई के जाने के बाद भगवान् राम भी बहुत उदास हो गए. जिस तरह लक्ष्मण राम के बिना नहीं रह सकते वैसे ही रात भी लक्षमण के बिना नहीं रह सकते. इसलिए भगवान् राम ने भी इस लोक से चले जाने का सोचा और तब भगवान् राम ने अपना पूरा राज-पाट और पद अपने अपने पुत्रो के साथ अपने भाई के पुत्रों को सौप दिया और सरयू नहीं की और चल पड़े. भगवान् राम सरयू नदी के बिलकुल आखिरी भूभाग तक चले गए और अचानक गायब हो गए. इसके कुछ देर बाद विष्णु जी प्रकट हुए और उन्होंने भक्तो को दर्शन दिया. इस तरह राम भगवान् ने अपने मानव रूप को छोड़ कर वस्तविक विष्णु रूप धारण किया और वैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान किया.