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प्रदक्षिणा-परिक्रमा से जाने-अनजाने में हुए पाप और जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं, जानिए मंदिर में किस देवता की कितनी परिक्रमा करना शुभ होता है

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शास्त्रों में मंदिर में पूजा करने के कुछ विशेष नियम भी बताए गए हैं। ऐसा ही एक नियम है घूर्णन का नियम। शास्त्रों में पूजा के बाद परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं किस देवता की कितनी परिक्रमा करने से व्यक्ति को शुभ फल मिलता है।

मंदिर में परिक्रमा का महत्व

परिक्रमा का वर्णन सनातन धर्म के वैदिक ग्रंथ ऋग्वेद में मिलता है। परिक्रमा को पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान की परिक्रमा करने से पापों का नाश होता है। मंदिर की परिक्रमा करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

परिक्रमा के नियम

मंदिर में परिक्रमा हमेशा दक्षिणावर्त करनी चाहिए। यानि कि परिक्रमा हमेशा भगवान की दाहिनी ओर से शुरू करें। परिक्रमा करते समय मंत्र का जाप करने का भी शास्त्रों में विधान है। इससे आपको परिक्रमा का पूरा फल मिलता है।

अर्थात् कानि चापाणि जन्मान्तर कृतानि च।

तानि सावर्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।

अर्थ- इस मंत्र का अर्थ यह है कि प्रदक्षिणा या परिक्रमा से जाने-अनजाने और पिछले जन्मों में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। भगवान मुझे सद्बुद्धि अर्थात् अच्छी बुद्धि (जिससे अच्छे-बुरे का ज्ञान हो सके) प्रदान करें।

किस देवता की कितनी परिक्रमा

भगवान गणेश की चार परिक्रमा, विष्णुजी की पांच परिक्रमा, देवी दुर्गा की एक परिक्रमा, सूर्य की सात परिक्रमा और भगवान भोलेनाथ की आधी परिक्रमा शुभ मानी जाती है। शिव की आधी परिक्रमा ही की जाती है क्योंकि मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग पर चढ़ाए गए जल का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। इसीलिए जलधारी तक पहुंचने के बाद ही परिक्रमा पूरी मानी जाती है।

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