कैंसर की चिकित्सा में प्राकृतिक से इलाज क्यों जरूरी है, जानिये
स्वास्थ्य। कैंसर रोग प्राकृतिक चिकित्सा से ठीक होता है। यह दावा कई रोगियों की चिकित्सा में सफलता मिलने के बाद किया जा रहा है। किसी भी रोगी के उपचार में रोगी के मानसिक सहयोग एवं शुद्ध विचार का रहना आवश्यक है।
रोग परिचय कैंसर एक अत्यंत तीव्र पीड़ा देने वाला तथा नाम से भयावना रोग है। इसमें एक ट्सूमर – गांठ फोड़ा के रूप में शरीर के भिन्न- भिन्न ( स्तन, गला, जीभ, आंख, बच्चेदानी, होंठ , भोजन नली, आमाशय, यकृत, गुदाद्वार इत्यादि) में होता है। पहले गांठ फूलती है फिर फट जाती है और फूल गाभी के आकार में सफेद मवाद के साथ इसकी आकृति बन जाती है। यह तो शरीर के ऊपरी भाग का स्वरूप है। शरीर के भीतरी भाग में भी भिन्न – भिन्न रूप में कष्ट देता है।
कैसर के प्रमुख कारण है
धूम्रपान, तम्बाकू का सेवन, पान – मसाला, गुटका। इनमे मुंह, होंठ, मसूड़े , जीभ का कैंसर होता है। कभी – कभी किसी अंग का पुराना घाव कैंसर में परिणत हो जाता है।
क्या कहते हैं डॉक्टर
कुछ लोग एक्जिमा के ठीक होने के लिए अलकतरा लगाते हैं और उससे कैंसर बन जाता है। अत्यधिक शराब पीने वालों को भी गला, यकृत, पकस्थली का कैंसर हो जाता है। तम्बाकू, सिगरेट तथा पर्यावरण के प्रदूषण से फेफड़े के कैंसर में विशेष बढ़ाेतरी हो रही है। बहुत अधिक गरम खाघ पदार्थ भी आमाशय में पहुंचकर आमाशयिक झिल्लियो को घायल करता है और कैंसर बन सकता है। अमरीका के न्यूयार्क कैंसर हॉस्पीटल के प्रमुख चिकित्सक डॉ. एल. डी. वक्ले का कहना है — ‘ अपनी लंबी जानकारी से मैं कह सकता हूं कि कोष्ठ – बद्धता के साथ इस रोग का विशेष संबंध है। कैंसर के हर एक रोगी को कोष्ठबद्धता की शिकायत रहती है। जब इन लोगों की कोष्ठबद्धता बहुत बढ़ जाती है, तब साथ ही कैंसर की शुरुआत भी हो जाती है। किन्तु पेट़ साफ हो जाने पर दर्द हो जाता है। इसलिए यह कहना सही है कि आंत में रूके हुए मल का दूषित रस ही इस रोग का कारण है।”
अन्य किसी भी भांति शरीर के भीतर कूड़ा- कचड़ा विजातीय मल का संचय होने पर ही यह रोग होता है। किसी भी एक अंग में कैंसर होने का अर्थ है कि समूचे शरीर में ही दोष संचित है। कैंसर तो उन्हें हो नहीं सकता जिनका जीवन सादा होता है। हां, किन्हीं रोगियों में अत्यधिक शोक या चितायुक्त अवस्था वालों को भी यह रोग होते देखा गया है। किसी विशेष व्यक्ति का विछोह, किसी दुर्घटना में किसी प्यारे व्यक्ति की मृत्यु, जीवना में कोई विशेष मानसिक तनाव भी कैंसर का कारण बन जाता है।
कैंसर का उपचार
आज जिस प्रकार का भय कैंसर के संबंध में लोगों में फैला हुआ है, वास्तव में वह इस कारण है कि आधुनिक विज्ञान में कैंसर का इलाज केवल ऑपरेशन को मान लेने की परम्परा चल रही है। इनमें असफलता ही अधिक है।
यह बात डॉ. राबर्ट बैल एम. डी. एफ. पी. एस. ने अपनी पुस्तक में लिखी है कि शस्त्र चिकित्सा ( शल्य चिकित्सा ) से कभी कोई कैंसर आरोग्य नहीं हुआ है, और कभी होगा भी नहीं। इसके परिणामस्वरूप मृत्यु संख्या बढ़ गई है। ….सत्रह वर्षों तक मैंने अपने कैंसर रोगियों की शस्त्र – चिकित्सा छोड़ दी है। इसका कारण यह है कि मैंने सर्वदा देखा है कि शस्त्र क्रिया के बाद रोग फिर लौट आता है और उसके बाद रोगी के कष्टों की सीमा नहीं रहती।
प्राकृतिक चिकित्सा
इसलिए केवल स्थानीय ( केवल एक-दो अंग की ) चिकित्सा करने का कोई लाभ नहीं। संपूर्ण शरीर की चिकित्सा न होने पर कैसर का निवारण नहीं हो सकता है। प्राकृतिक चिकित्सा में सम्पूर्ण शरीर के विकार निवारण हेतु निम्रांकित प्रयोग किए जाते हैं —
⚫ पेट पर 30 मिनट के लिए ठंडी मिट्टी की पट्टी रखने के बाद नीम के पानी का एनिमा प्रतिदिन दिया जए।
⚫ ठंडे पानी का कटि – स्नान 10-10 मिनट का दिया जाए।
⚫ धूप-स्नान रोजाना 30 मिनट का दिया जाए। सिर पर गीला कपड़ा रखकर, सफेद सूखी वस्त्र पहनकर या नंगे बदन धूप में बैठें।
शरीर पर धूप 30 मिनट कम-से-कम, परन्तु यदि 1-2 घंटे भी ली जाए तो अच्छा ही होगा।
⚫ शुद्ध खुली वायु का सेवन, प्रतिदित गर्म या वंडे जल से स्नान करना आवश्यक है।
⚫ कैंसर के बाहरी फोडे गांठ पर ठंड़ी मिट्टी की पट्टी दिन में 3-4 बार, 20-30 मिनट एक बार रखकर बदलते रहें। दो पट्टियों के बीच में 1 घंटे का अंतर रखे। यदि कैंसर की गांठ पर प्रारंभ में ही ठंडी मिट्टी की पट्टी या ठंड़े पानी की पट्टी लगाई जाए तो गांठ दब जाती है।
कैंसर की गांठ या फोड़ा यदि अंदर के भाग ( आंत, गर्भाशय, आमाशय, लीवर आदि ) में है तब भी इसके ऊपर ठंडे पानी या ठंड़ी मिट्टी की पट्टी का पयोग विशेष काम करता है। कैसर की स्थानीय पीड़ा यदि केवल ठंडी पट्टी से ठीक नहीं होती हो तो गरम ठंडी सेक कभी-कभी दी जा सकती है। एक बर्तन में गरम पानी और दूसरे में ठंड़ा पानी लेकर तौलिया गरम पानी में नियोड़कर गर्म सेक तथा ठंडे में भिगोकर ठंडी सेक दी जाती है। ये तमाम प्रयोग किसी प्राकृतिक चिकित्सालय में जाकर समझे जा सकते हैं अथवा रोगी को ही कुछ दिन प्राकृतिक चिकित्सालय में रहकर प्रयोग समझ लेना चाहिए।