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बच्चे बिगड़ैल क्यों बनते हैं? कारण जानकर हैरान रह जाएंगे आप

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आप अपने बच्चों की देखभाल में इतना कम ध्यान क्यों देते हो, और दौलत पाने के लिए पत्थरों को तराशने में इतना ज्यादा समय क्यों देते हो, जबकि एक दिन यह सब बच्चों के लिए ही छोड़ जाना है –सुकरात.

आइये जानते हैं कि बच्चे बिगड़ैल क्यों बनते हैं –

उसे बताइए कि हर चीज की एक कीमत होती है. लिहाज़ा वह एक दिन अपनी ईमानदारी बेच देगा…
उसे किसी भी बात पर दृढ न रहने की शिक्षा दीजिये. लिहाज़ा वह हर चीज पर फैसला करेगा…
उसे सिखाइए कि ज़िन्दगी में कामयाबी ही सब कुछ है; लिहाज़ा वह हर तिड़कम करके कामयाब होने की कोशिश करेगा…
उसे बचपन से ही वह सब कुछ दीजिये, जिसकी उसे चाहत है; लिहाज़ा वह इस सोच के साथ बड़ा होगा कि उसकी ज़िन्दगी की जरूरतें पूरी करना दुनिया की ज़िम्मेदारी है और उसके सामने हर चीज़ तश्तरी में परोस कर पेश कर दी जाएगी…
जब वह गंदे लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करे, तो उस पर हँसिए. इससे वह खुद को चतुर समझने लगेगा…
उसे नैतिकता सिखाने की बजाए, उसके 21 साल होने का इंतजार कीजिये, ताकि वह अपने बारे में ख़ुद फ़ैसला कर सके…
उसे सही दिशा का ज्ञान कराये बिना चुनाव करने की आज़ादी दीजिये. उसे यह कभी न सिखाइए कि हर चुनाव का एक नतीज़ा भी होता है…

उसे उसकी गलतियों के बारे में यह सोचकर कभी कुछ न बताइए कि इससे उसके मन में कुंठा (complex) पैदा हो जाएगी. लिहाज़ा कोई गलत काम करते हुए पकड़े जाने पर वह यह मानेगा कि समाज उसके खिलाफ़ है…
उसके आसपास बिखरी हुई हर चीज़, जैसे कि किताबें, जूते, कपड़े वगैरह खुद उठाइए. उसका हर काम खुद कीजिये. नतीजा यह होगा कि उसे अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ दूसरों के कन्धों पर डालने की आदत हो जाएगी…
वह जो भी चीजें देखना सुनना चाहे, उसे देखने और सुनने की आज़ादी दीजिये. उसके शरीर में जाने वाली खुशबु पर तो ध्यान दीजिये, पर उसके मस्तिष्क में कूड़ा जाने दीजिये…

दोस्तों के बीच लोकप्रिय होने के लिए उसे कुछ भी करने दीजिये…

उसके मौजूदगी में अकसर झगडिये. लिहाज़ा घर टूटने पर उसे कोई भी अचरज नहीं होगा…
वह जितना पैसा मांगे, उसे दीजिये. उसे पैसे की कीमत कभी न समझाइए. इस बात का पूरा ध्यान रखिये कि उसे वैसी दिक्कतों का सामना कभी न करना पड़े, जिनका सामना हमको करना पड़ा था…
खाने, पीने और ऐशोआराम की सारी शारीरिक जरूरतों को यह सोचकर फ़ौरन पूरा कीजिये कि चीज़ें न मिलने पर वह हताश होगा…
पड़ोसियों और अध्यापकों के सामने यह सोचकर हमेशा उसका पक्ष लीजिये कि हमारे बच्चे के लिए उनके मन में मैल है..

जब वह किसी असली मुसीबत में फँसे, तो यह कहकर हाथ झाड़ लीजिये, “मैंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की, पर उसके लिए कुछ न कर सका…”

उसे यह सोचकर किसी बात पर मत टोकिये कि अनुशासन से आज़ादी छिन जाती है…
उसे आज़ादी का पाठ पढ़ाने के लिए माँ-बाप की तरह सीधा नियन्त्रण रखने की बजाय उस पर दूर से नियन्त्रण रखिये…

उसे हर एक चीज़ करने की छुट दीजिये और उसकी गलतियों को नजरअंदाज करते चलिए…

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