हिन्दू धर्म में जनेऊ पहनने के पीछे क्या है धार्मिक और वैज्ञानिक आधार, जानिए

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हिन्दू धर्म में संस्कार को खास महत्व दिया गया है। वैसे तो धर्म में सोलह संस्कार की चर्चा की गई है लेकिन इनमें से जनेऊ संस्कार को पवित्र माना गया है। कहते हैं कि जनेऊ संस्कार की परंपरा का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं है बल्कि इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं। इसके अलावा यज्ञोपवीत भारतीय संस्कृति का मौलिक सूत्र है। क्योंकि माना जाता है कि इसका संबंध आध्यात्मिक, भौतिक और दैविक इन तीनों से है। परंतु क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धर्म में जनेऊ धारण करने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण क्या-क्या हैं? यदि नहीं! तो आगे हम इसे जानते हैं।

जनेऊ संस्कार

शास्त्रों में यज्ञोपवीत यानि जनेऊ को यज्ञ सूत्र और ब्रह्मा सूत्र भी कहा गया है। बाएं कंधे पर स्थित जनेऊ देव भाव का तथा दाएं कंधे पर स्थित जज्ञोपवीत पितृ भाव को दर्शाता है। कहते हैं कि मनुष्य से देवत्व की प्राप्ति के लिए जनेऊ सशक्त साधन है। यज्ञोपवीत का हमारे स्वस्थ्य से भी गहरा संबंध है। यह हृदय, आंतों और फेफड़ों की क्रियाओं पर इसका व्यापक असर पड़ता है।

लंदन के क्वीन एलिजाबेथ विश्वविद्यालय के भारतीय मूल के डॉक्टर एस. आर सक्सेना के अनुसार हिंदुओं द्वारा मल-मूत्र त्याग के समय पर कान पर जनेऊ लपेटने का वैज्ञानिक आधार है। डॉक्टर सक्सेना के अनुसार ऐसा करने से आंतों की अपकर्षण गति बढ़ती है। जिससे कब्ज की समस्या दूर होती है। साथ ही मूत्राशय की मांसपेशियों का संकोच वेग के साथ होता है।

हीं कान के पास की नसें दबाने से बढ़े हुए रक्तचाप को नियंत्रित तथा कष्ट से होने वाली श्वसन क्रिया को सामान्य किया जा सकता है। इसके अलावा कान पर लपेटी गई जनेऊ मल-मूत्र त्याग के बाद अशुद्ध हाथों को तुरंत साफ करने के लिए प्रेरित करती है। वहीं शास्त्रों के अनुसार जनेऊ में तीन-तीन धागे का सूत्र ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक बताया गया है। यज्ञोपवीत के संबंध में मान्यता यह भी है कि अविवाहित पुरुष तीन धागे वाला जनेऊ धारण करते हैं जबकि विवाहित पुरुष छह धागों वाला यज्ञोपवीत पहनते हैं।

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