बॉलीवुड के अनकहे किस्से- जब आग में मिले दो दिल, जाने पूरी बात
अजय कुमार शर्मा
वह एक मार्च 1957 का दिन था। मदर इंडिया फिल्म के लिए महबूब खान के निर्देशन में कैमरामैन फरदून ईरानी एक मुश्किल शॉट की शूटिंग पिछले एक हफ्ते से कर रहे थे। क्लाइमैक्स के इस दृश्य में राधा (नर्गिस) का बेटा बिरजू (सुनील दत्त) जब गांव वाले से बचने के लिए घास के ढेर में छिप जाता है तो उसको बाहर निकाल के गांव वाले उसमें आग लगा देते हैं। उसी ढेर में उसकी मां भी उसे ढूंढ रही है। पहले नर्गिस की डबल (डुप्लीकेट) यह काम कर रही थी लेकिन उसके चोटिल हो जाने की वजह से यह सीन नर्गिस ने खुद करने की इच्छा जाहिर की। शूटिंग के समय सब ठीक चल रहा था लेकिन अचानक हवा का रुख बदल गया और नर्गिस आग के घेरे में घिर गईं। तब वहीं सेट पर उपस्थित सुनील दत्त अपनी जान की परवाह किए बिना उन लपटों में घुस गए और नर्गिस को बाहर निकाल लाए। सुनील दत्त चेहरे और छाती पर ज्यादा जले थे और नरगिस के दोनों हाथ जले थे। अगर सुनील दत्त यह तत्परता न दिखाते तो नर्गिस का बचना मुश्किल था। उस समय की सबसे सुपर अभिनेत्री तब केवल 28 वर्ष की थीं। अब सबसे बड़ी चिंता उन दोनों के इलाज की थी।
शूटिंग मुंबई से काफी दूर हो रही थी। अंत में महबूब खान ने उन्हें अपने घर बिलीमोरा जो वहां से 35 किलोमीटर दूर था, भेजने का निर्णय लिया। नर्गिस तो थोड़े इलाज के बाद ठीक होने लगीं पर सुनील को तेज बुखार था और वह थोड़ी-थोड़ी देर में बेहोश हो रहे थे। यही वह समय था जब नर्गिस पहली बार सुनील दत्त के प्रति आकर्षित हुईं। उन्हें पहली बार महसूस हुआ कि उनकी इस दशा की जिम्मेदार वही हैं क्योंकि उन्होंने उस आग से बचने के लिए कोई कोशिश नहीं की थी और वह वहीं अपने स्थान पर ही खड़ी रह गई थीं। बाद में इस बारे में उन्होंने कहा था कि उन्हें लग रहा था कि जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें वहीं रुकने को कह रही है। वह तुरंत ही सुनील की सेवा में लग गईं। उन्होंने उनके तपते माथे पर गीली पट्टियां रखीं, उन्हें खाना खिलाया और पूरी रात उनके पास बैठी रहीं। वह सुनील के आंखें खोलने का बेबसी से इंतजार कर रही थीं और जब उन्होंने अपनी आंखें खोली तो नर्गिस को महसूस हुआ कि वह सुनील को अच्छी तरह से जानने लगी हैं।
पंद्रह दिन के इलाज़ के दौरान एक साथ बिताए इन दिनों ने दोनों को और नज़दीक ला दिया। नर्गिस को पहली बार एहसास हुआ कि वे राज कपूर को भूलने लगीं हैं। राज की तुलना में सुनील उन्हें सीधा सादा और नेकदिल इंसान लगे। उनके मन में औरत के प्रति बेहद आदर और सम्मान था। उनका व्यवहार राज से मिले जख्मों पर मलहम की तरह था। दोनों ने इस दौरान शादी का फैसला ले लिया लेकिन इस फैसले के कई दूरगामी परिणाम हो सकते थे। अतः दोनों ने इस बात को छुपा कर रखना ही बेहतर समझा। क्योंकि जहां उनके इस निर्णय से फिल्म मदर इंडिया के व्यापार को नुकसान हो सकता था वहीं नर्गिस का परिवार जो पूरी तरह उनकी आय पर निर्भर था, उनकी शादी किसी मामूली अभिनेता के साथ स्वीकार नहीं कर पाता।
नर्गिस ने विवाह के बाद फिल्म न करने का निर्णय लिया और उस समय शादी के लिए तय तारीख 15 अगस्त 1958 से पहले तीन फिल्मों लाजवंती, घर संसार और अदालत को पूरा किया। अफवाहों से परेशान होकर नर्गिस ने एक इंटरव्यू फिल्म फेयर को दिया और कहा कि उस आग में पुरानी नर्गिस जलकर राख हो चुकी थी यानी कि नई नर्गिस कहीं ना कहीं सुनील दत्त के जीवन में आने के लिए तैयार थी। राज कपूर के साथ आग फिल्म से शुरू हुई यह प्रेम कहानी एक आग से बदली और अतंत: 11 मार्च 1958 को दोनों विवाह के पवित्र बंधन में बंध गए। अतीत को राख में बदलकर नर्गिस ने एक गरिमामय पत्नी का किरदार आजीवन बखूबी निभाया।
चलते चलतेः आग से घायल हुए सुनील की देखभाल के समय परवान चढ़े दोनों के प्रेम के दौरान ही एक दूसरे को पत्र लिखकर अपनी बातें कहने का निर्णय हुआ। अपने खतों में वे एक दूसरे को पिया और हे देयर से संबोधित करते। जब वे एक दूसरे को टेलीग्राम भेजते तो पिया और हे देयर के नाम से हस्ताक्षर करते। एक और नाम भी उन्होंने एक दूसरे को दिया हुआ था मर्लिन मनरो और एलविस प्रेसली…।
(लेखक- अजय कुमार शर्मा, राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)