सुप्रीम कोर्ट ने को सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी वर्ग आरक्षण राज्य सरकारों पर छोड़ा
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने को सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी वर्ग को आरक्षण के मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए इस मामले को राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है। कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देना जरूरी नहीं है । अगर राज्य सरकारें चाहे तो वो आरक्षण दे भी सकती हैं और नहीं भी । देखा जाये तो इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने अपना दामन बचाते हुए सारा बोझा राज्य सरकारों पर रख दिया है | साथ ही साथ केंद्र सरकार को भी पनाह दी है । अब आरक्षण पर सियासत का केंद्र दिल्ली न हो कर देश के राज्य होगें।
और यह होता भी देख रहा है । 2019 से पहले देश के तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ में चुनाव होने है और इसके पूरे आसार देख रही है कि दलित समर्थक संगठन अपनी धूमिल पड़ी राजनीति को चमकाने का इससे बेहतर अवसर नहीं मिलेगा । क्योंकि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण राज्य मंत्री रामदास अठावले ने पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असंतोष व्यक्त किया और कहा कि कहा वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे और उनसे अनुरोध करेंगे और इस पर पुनर्विचार का आग्रह करते हुए संसद में एक बिल लायें ।
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रामदाम अठावले ने कहा कि हमारे संविधा में एससी-एसटी और ओबीसी के आरक्षण के लिए प्रावधान है। अठावले ने कहा कि संविधान द्वारा अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों को प्रदान किया गया आरक्षण हर जगह और क्षेत्र में लागू होना चाहिए।
संविधान द्वारा प्रदान किया गया आरक्षण – जिसे भीम राव अम्बेडकर द्वारा तैयार किया गया था- हर क्षेत्र में समाज के वंचित वर्गों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए हर क्षेत्र और स्थान पर लागू किया जाना चाहिए । वहीँ बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में अपने पत्ते न खोलते हुए बसपा अध्यक्ष मायावती ने एक बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कुछ हद तक स्वागत किया जा सकता है क्योंकि अदालत ने आरक्षण लागू करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है और यह तय किया है कि केंद्र और राज्य सरकारें, यदि वे चाहें तो, एससी और एसटी श्रेणियों से सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देना जारी रख सकती हैं ।
इस तरह से मायावती कही न कही चुनाव के समय राज्य सरकारों को पदोन्नति में आरक्षण नियम न लागू करने के मसले पर घेर सकती है । जाहिर अभी इस मुद्दे पर देश की राजनीति गरमाई रहेगी । क्योंकि फ़ैसला जिस रूप में आया है, उसका मतलब यह है कि आरक्षण के आधार पर प्रमोशन को अगर लागू किया गया तो देश में मुक़दमों की बाढ़ आ सकती है क्योंकि प्रतिनिधित्व के आंकड़ों को अदालत में चुनौती दी जा सकेगी। राजनैतिक दलों के लिए यह फ़ैसला दोधारी तलवार साबित हो सकता है। कुल मिलाकर खेल प्रतीकवाद का है।
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