रहस्यमयी चीजों के लिए जाना जाने वाला रुद्राक्ष भगवान शिव को बेहद प्रिय
प्राचीन काल से ही रुद्राक्ष को अपनी दिव्य शक्तियों के कारण बहुत शुभ माना जाता है। भगवान शिव ऐसा कहा जाता है कि इसे धारण करने का मौका केवल उसी को मिलता है जिस पर महादेव की कृपा होती है। ‘रुद्राक्ष’ का अर्थ है – रुद्र की धुरी यानी शिव के आंसू। इस आध्यात्मिक मोती की उत्पत्ति की कहानी बताती है कि इसे स्वयं शिव का आशीर्वाद क्यों माना जाता है। तो आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई?
रुद्राक्ष के बारे में कई कहानियाँ प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रिपुरासुर नाम का एक राक्षस था जिसके पास कई दिव्य शक्तियां थीं, जिसके कारण वह अत्यधिक अहंकारी हो गया और देवताओं और ऋषियों को परेशान करने लगा। इससे तंग आकर देवताओं ने भगवान शिव से उसे मारने की प्रार्थना की।
देवताओं की पीड़ा सुनकर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं तो शिवजी की आंखों से आंसू निकल पड़े। पृथ्वी पर जहां-जहां उनके आंसू गिरे, वहां-वहां रुद्राक्ष के पेड़ उग आए। साथ ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करके पूरे विश्व में फिर से शांति स्थापित की।
कितने मुखी रुद्राक्ष पाए जाते हैं?
रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला मोती है जो रुद्राक्ष के पेड़ पर उगता है। एक माला में आमतौर पर 108 रुद्राक्ष होते हैं। ये विभिन्न रूपों में पाए जा सकते हैं, यानी 1 मुखी से लेकर 27 मुखी तक। इसे धारण करने वाले भक्तों को ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती है।
रुद्राक्ष धारण करने के नियम और समय
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रुद्राक्ष को शुक्ल पक्ष की तिथियों, जैसे पूर्णिमा, अमावस्या, एकादशी आदि में धारण करना चाहिए। साथ ही पवित्र मोती धारण करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। भोलेनाथ का ध्यान करते हुए और ‘ૐ नम: शिवाय’ मंत्र का जाप करते हुए रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।