भगवान कृष्ण कहते हैं कि आत्मा की आवाज अवश्य सुननी चाहिए, कुछ भी बुरा करने से रोकती है

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मनुष्य संसार का सर्वोत्तम प्राणी है। वह लगातार खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करता है। इन प्रयासों में वह आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग अपने आध्यात्मिक विकास के लिए करता है। इसी शक्ति से हम ईश्वर को महसूस कर पाते हैं। आत्मा हमें कभी गलत काम करने के लिए नहीं कहती। भगवान कृष्ण ने आत्मा को अमर और अविनाशी बताया है।

आत्मा का निवास हृदय में है। इसीलिए आत्मा की पुकार को हृदय की पुकार भी कहा जाता है। यह आह्वान व्यक्ति को जीवन में कभी निराश नहीं करता। जब हम लोभ और स्वार्थ के कारण अपने क्षणिक सुख के लिए आत्मा की पुकार को अनदेखा कर देते हैं, तब हम ईश्वर द्वारा दी गई शक्तियों का दुरुपयोग करने लगते हैं। इसको कहते हैं आत्मा की बेइज्जती करना।

जब कोई व्यक्ति बुरे कर्मों में लिप्त होता है, तो उसकी आत्मा एक बार उसे पुकारती है, “क्या कर रहे हो?” तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? लोग क्या कहेंगे? यह स्वर मुख्य रूप से तब उत्पन्न होता है जब व्यक्ति गलत कार्यों की सीमा को लांघने लगता है। इतना होते हुए भी अंतरात्मा की आवाज पर स्वार्थ और क्षणिक सुख की जीत हो जाती है और आत्मा कुछ समय के लिए हार मान लेती है लेकिन वह गलत को गलत कह कर बिना किसी झिझक के अपना नुकसान भी कराती है।

आत्मा कभी पाप को पुण्य नहीं मानती। गीता के एक उपदेश में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति कभी हर्षित नहीं होता, कभी द्वेष नहीं करता, शोक नहीं करता, कभी कामना नहीं करता और शुभ-अशुभ कर्मों का रक्षक होता है, वह व्यक्ति मुझे बहुत प्रिय है। जो अपनी आत्मा की वाणी सुनते हैं, उस पर मनन करते हैं, वे अपने कर्तव्यों में दृढ़ हो जाते हैं। वे अपने अतीत को भूलकर आगे बढ़ने लगते हैं और जीवन में अपने सकारात्मक लक्ष्यों को पूरा करते हैं। वास्तव में आत्मा की वाणी जीवन की राह दिखाती है।

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