एकाध घंटे के लिए स्वयं बच्चा बन जाइए
दादी-बाबा या नाना-नानी के लिए अपने घर के नन्हें-मुन्नों के साथ हंसना-खेलना विशेष रूप से स्वास्थ्यवर्धक होता है। आप अपनी उम्र, परेशानियों और समस्याओं को भूलकर एकाध घंटे के लिए स्वयं बच्चा बन जाइए। बच्चों के साथ बातें करिए, हंसिए-हंसाइए और खेलिए। इससे आप अपने जीवन में एक नई सरसता तथा उत्साह का अनुभव करेंगे।
वयस्क पुत्र-पुत्रवध या पुत्री को चाहिए कि वह घर के बुजुर्गो को बच्चों के साथ खेलने के लिए उत्साहित तथा प्रेरित करें।
बच्चों से भी कहें कि वे घर के बुजुर्गो का सम्मान करें और उनके साथ खेलें। बुजुर्ग लोग हंसने-खेलने और कहानियां सुनाने के अवसर का सदुपयोग बच्चों को अच्छी आदतों की शिक्षा देने के लिए कर सकते हैं। हंसी-खेल में दी गई शिक्षाएं बच्चों के मन पर जल्दी असर डालती हैं।
वास्तव में समाज में ‘परिवार’ रूपी संस्था का उदय और विकास इसी उददेश्य से हुआ था कि छोटे बच्चों का लालन-पालन तथा वृद्धजनों का जीवन सुरक्षापूर्वक हंसी-खुशी से व्यतीत हो जाए। किंतु पूंजी पर आधारित आधुनिक भोगवादी व्यवस्था ने परिवार ने इस उददेश्य को पुनः स्थापित करना होगा।