अगर आप भी किसी की 13वीं पर खाते हैं मृत्युभोज, तो जान लें यह भयंकर बातें जानकर हैरान रह जाएंगे
13वीं पर खाते हैं मृत्युभोज : आज के समय में हम बहुत से रीति रिवाज करते हैं जीवित रूप में भी और मृत्यु होने के बाद भी करवाते हैं। तो ऐसा ही किसी की मृत्यु के बाद हम तेरवी के रूप में मृत्यु भोज समाज में आयोजित करते हैं और समाज के लोगों को आमंत्रित करते हैं और उन्हें भोजन करवाते हैं? कई लोगों का मानना है कि यह सही है और कई लोग मानते हैं या गलत है। महाभारत की बात करें तो महाभारत की एक कहानी इससे मिलती है, जिस में श्रीकृष्ण ने स्वयं ही इसके बारे में बताया है। तो आइए इस कहानी के बारे में जानते हैं।
युद्ध होने को था तब भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के घर जाकर युद्ध ना करने और संधि कर लेने का प्रस्ताव रखा। लेकिन दुर्योधन द्वारा प्रस्ताव ठुकरा आने के कारण भगवान श्रीकृष्ण को बहुत दुख हुआ और वह बाहर की ओर जाने लगे। तब दुर्योधन के श्रीकृष्ण को भोजन करने के आग्रह पर श्री कृष्ण ने कहा कि “जब भोजन करवाने और भोजन करने वाले दोनों का मन प्रसन्न हो तब ही भोजन करना चाहिए, लेकिन यदि दोनों के मन में पीड़ा हो वेदना हो तो कदापि भोजन नहीं करना चाहिए।”
श्री कृष्ण के कहे हुए इसी बात को बुद्धिजीवियों ने हमारे जीवन से जोड़कर देखा है। जब खिलाने वाले और खाने वाले का मन प्रसन्न ना हो मन में पीड़ा हो या वेदना का भाव हो तो उस समय भोजन कदापि नहीं करना चाहिए ऐसा करने पर आपका पेट तो भर जाएगा लेकिन मन को शांति कदापि नहीं मिल पाएगी।