लंबे समय तक वर्षा ना हो तो सुखा अपदा जीवो के लिए खतरनाक होता है
यदि लंबे समय तक वर्षा ना हो और कृषि फसल ना के बराबर उत्पादन हो तो इसे सूखा कहां जाता है। सुखा एक प्रकार से प्राकृतिक आपदा है जिसमें अनियमित दिनों तक वर्षा होती है जिसमें वायुमंडल में विषम प्रकार के जलवायु उत्पन्न हो जाती है जिसे मानव,जीव-जंतु पशु -पक्षी विशेष प्रकार की समस्या उत्पन्न हो जाती है। सुख एक प्रकार से मानव इसके लिए उत्तरदाई है क्योंकि मानव की गतिविधियां ही सूखा के परिणाम बनती है क्योंकि मानव आपने लाभ से पर्यावरण पर कई प्रकार के प्रभाव को डाला है जिसके चलते वायुमंडल विषम जलवायु उत्पन्न हुआ है ,कभी-कभी अकाल इतनी व्यापक हो जाती है कि लोगों को जीवन को संभालना बहुत ही परेशान का कारण बन जाता है।
सुखा होने के से वायुमंडल में “वाष्पीकरण” की दर घट जाती है तथा कृषि उत्पादन, जंतुओं का जीवन जीना मुश्किल हो जाता है। वर्षा ना होने से जल की कमी हो जाती है जिसे “जल का अकाल” कहते हैं। वर्षा ना होने से जल का प्रदूषण भी बढ़ जाता है और जल से होने वाली बीमारियों की संख्या भी बढ़ जाती है। सुखा से कई प्रकार के समस्याओं और जलाशयों में जल की मात्रा घट जाती है जैसे कुआं ,नलकूप, नहर ,नदी इत्यादि में जल की मात्रा ना के बराबर हो जाती है। भारत देश में वर्षा अपर्याप्त मात्रा में होती है कहीं अधिक तो कहीं ज्यादा तो कहीं ना के बराबर वर्षा होती है। वर्षा की विभिन्न स्थितियों विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के प्रभाव को डालती है जिसमें सुखा ,अल्प सूखा आपदा जैसी समस्या बन जाती है।
सुखा अपदा को नियंत्रण करने के लिए निम्न उपाय अपनाए जाते हैं जिसमें सबसे प्रमुख वाष्पीकरण की प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए वृक्षारोपण का कार्य किया जाता है तथा नदियों को आपस में जोड़कर जल की मात्रा को बढ़ाया जाता है। नदियों पर बांध बनाकर जल को रोकने का कार्य किया जाता है तथा जलाशयों के माध्यम से आसपास के क्षेत्रों को सिंचित, जलापूर्ति एवं अन्य गतिविधियों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। सुखा से बचने के लिए यह उपाय है कि सुख उत्पन्न हम ना होने दें हम अपनी बुद्धि से सुखा को नियंत्रण कर सकता है जिसमें वर्षा जल को संग्रहित करके तथा बड़-बड़े जलाशयों का निर्माण करके हम इसे सुखा होने से बचा सकते हैं तथा जैव विविधता के लिए भी हम एक बहुत बड़ी सराहनीय योगदान कर सकते हैं।