हम कब तक चीन, सऊदी अरब और IMF की भीख पर निर्भर रहेंगे? पाक मीडिया में यह सवाल उठाया जा रहा है
आर्थिक संकट से जूझ रहे पड़ोसी देश पाकिस्तान ने 6 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज पाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की सभी शर्तें मान ली हैं, लेकिन IMF ने टीम भेजने की बात कही है. कहीं न कहीं इस महीने के अंत तक लेकिन पाकिस्तान में अब सरकार की कर्ज नीति के खिलाफ आवाज उठने लगी है. कर्ज का आधा हिस्सा विदेशी कर्ज पर ब्याज चुकाने में चला जाता है।
वरिष्ठ पत्रकार और सार्वजनिक नीति विश्लेषक दुर्दाना नजम ने पाकिस्तानी अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ में एक लेख में कहा कि कर्ज की नई किश्त प्राप्त करने से पहले ही पाकिस्तान सरकार की अपनी पिछली प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में असमर्थता प्रत्येक नई किश्त के साथ एक प्रमुख मुद्दा है। तो बन गई मैराथन उन्होंने लिखा कि हर नया कर्ज विदेशी कर्ज का बोझ बढ़ाता है, इससे उबरने के बजाय देश रसातल में जा रहा है.
उन्होंने सवाल उठाया है कि पाकिस्तान कब तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और चीन, सऊदी अरब जैसे सहयोगी देशों से कर्ज लेता रहेगा और पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था कब तक अपनी किस्तों का भुगतान करने के लिए संघर्ष करेगी।
नजम ने लिखा, “पाकिस्तान वर्तमान में 22वें आईएमएफ कार्यक्रम का आनंद लेने जा रहा है, जबकि पहले से ही ब्याज भुगतान के नाम पर अरबों डॉलर का बकाया है।” उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान चालू खाते के घाटे और लगातार घटते विदेशी मुद्रा भंडार के संकट से उबारने के लिए लगातार आईएमएफ, सऊदी अरब और चीन की ओर रुख कर रहा है. इससे मिलने वाला कर्ज हमारे बाहरी वित्तीय दायित्वों को भी पूरा करेगा, जो हमारे कर्ज की किश्तों को पूरा करने और बड़े आयात बिल को पूरा करने, सबसे महत्वपूर्ण रूप से तेल की खरीद से जुड़े हैं।
लेखक लिखता है, “पाकिस्तान को अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने के लिए बाहरी मदद की आवश्यकता क्यों है? उत्तर सरल है: पाकिस्तान की लागत उसकी वित्तीय क्षमता और धन उगाहने के साधनों से कहीं अधिक है। इसके अलावा किसी भी देश के विकास और प्रगति के लिए दो चीजें होती हैं। आवश्यक: एक सख्त कानून का नियम है और दूसरा एक मजबूत और गैर दखलंदाजी कर प्रणाली है। इसी तरह, एक विकासशील देश की पहचान उसकी बचत और निवेश करने की क्षमता से होती है। जो भी देश इन चार आयामों में विफल होता है, वह फंस जाता है। असहनीय आर्थिक संकट। दुर्भाग्य से पाकिस्तान विकास के इन पैमानों में फंसा हुआ है।
उन्होंने लिखा कि सवाल यह है कि क्या कोई दलदल में खड़ा रह सकता है? नहीं। अगर नहीं तो दलदल में कैसे तैर रहा है पाकिस्तान? इसका जवाब पाकिस्तान के अभिजात वर्ग के पास है।