रोचक तथ्य – कैसे हुई थी श्रीराम की मृत्यु – यह थी वो सच्चाई
हम दीवाली क्यों मानते है? बस 50% लोगों को ये पता है। तो हम दीपावली इस लिए मानते है क्योंकि इस दिन 14 साल वनवास काटने के बाद श्री राम अपने घर आयोद्या वापस आये थे। भगवान विष्णु जी ने अपने दृश्य राक्षश रावण का वध करने के लिए मनुष्य रूप मैं श्री राम का अवतार लिया था।
धरती पर हर इंसान का एक समय होता है। उस समय के बाद एक ये धरती छोडनी पड़ती है। रामायण के पात्र को घटना क्रम और कथा को लेकर कही ग्रंथ रचे गए। रामायण के कही पहल है, और उन मेसे एक है की श्री राम जी की मौत कैसे हुई थी।
तो आपको पता ही होगा रामजी की कहानी को। तो रावण का वध करने के बाद और 14साल वनवास पूरा करने के बाद वे अयोध्या वापस आये थे। और वे अयोध्या के राजा बने और खुशी से वहा रहने लगे। उसी बीच अयोध्या मैं रहने वाले एक धोबी के साथ हुई घटना से श्री राम को दुविधा मैं डाल दिया। वह ऐसा हुआ की धोबी की पत्नी एक रात से घर नहीं आई। पर अगले दिन सुबह वह घर आई। धोबी ने तो अपनी पत्नी को स्वीकार किया। मगर अयोध्या के निवासियों ने धोबी के निर्णय को पूरा विरोध किया। जब ये बात श्री राम की राज्यसभा मैं पहुँची। तो भरत ने ये कहा की अयोध्या के न्याय विधान के अनुसार धोबी को अपनी पत्नी को त्यागना पड़ेगा, क्योंकि ओ अब अपवित्र हो गयी है।
भगवान श्री राम जानते थे की उनकी पत्नी सीता अग्नि की तरह पवित्र है। जब धोबी ने अपनी पत्नी को त्याग दिया। तो श्री राम ने भी अपनी पत्नी सीता को त्याग दिया। क्योंकि उनके लिए भी न्याय विधान सामान है। और इसी के चलते श्री राम के भाई लक्ष्मण ने देवी सीता को घने जंगल मैं छोड़ आये। तभ देवी सीता उसी जंगल मैं वाल्मीकि के आश्रम में रहने लगी। उसी आश्रम मैं देवी सीता ने दो बच्चों को जनम दिया। उन दो बच्चों को श्री राम को सौपने के बाद देवी सीता धरती मैं समां गयी।
एक दिन महाकाल तपस्वी के रूप में रामजी से मिलने आया। उसने कहा की मुझे आपसे बात करनी है, लेकिन हमें बात करते वक्त अगर कोई सुनता है तो आपको उसे मौत देनी पड़ेगी। और कोई हमें बात करते वक्त देखे तो आपको उसका वध करना पड़ेगा। शर्ते सुनकर श्री राम ने लक्ष्मण को बाहर पहरा देनेको बोले। और वे अंदर बाते कर रहे थे। कक्ष के अंदर जाते ही तपस्वी श्री राम से बोले में काल हु और मुझे ब्रम्हदेव ने भेजा है की आपके जितने भी कार्य मृतु लोक मै पुरे कर चुके है।अगर आप पृथ्वी पर रहना चाहते है या अपने परम धाम पे लौटना चाएंगे। तबी ऋषि आके श्री राम से मिलने की जिद करते है। लेकिन लक्ष्मण जी थोडी प्रतीक्षा करे ऐसा बोलते है। और ओ ऋषि क्रोधित होकर लक्ष्मण को कहते है, मैं हे अयोध्या तबाह कर दूंगा। फिर लक्ष्मण ने सोचा की मेरी एक की मौत से हमारा अयोध्या सही सलामत तो रहेगा। तभी लक्ष्मण कक्ष मैं श्री राम से मिलने जाते है। लक्ष्मण को आते देख कर काल गायब हो गए। काल की शर्तों को लेकर श्री राम को अब उनके भाई का वध करना पड़ेगा।
श्री राम इस उल्ज़न मै पड गए और वे ऋषि मुनि के पास जाकर ये बात बताई। तभी ऋषि मुनि ने श्री राम से कहा अपने भाई को त्याग दो। त्याग देना भी वध करने जैसा ही होता है। ऋषिमुनि की बात सुनकर श्री राम जी ने लक्ष्मण का त्याग कर दिया। श्री राम जी के त्याग करने से लक्ष्मण जी आसु बहते हुए सीधा सरयू नदी के अंदर चले गए। वहा पर उन्होंने अपनी सारी इंद्रियोंको को वश मै कर, अपनी साँस रोक ली। सारे देवताओंने लक्ष्मण जी को देख कर, उनके ऊपर फूलों की बारिश कर दी। और आखिर इंद्र देव आकर उनको स्वर्ग में लेके चले गए।
यहाँ हुई थी श्री राम की मृत्यु
आखिर श्री लक्ष्मण जी के मृत्यु लोक को छोड़ने के बाद, श्री राम ने भी पृथ्वी लोक को छोड़ने का फैसला कर लिया। भगवान श्री राम का ये निश्चय सुनकर सुग्विर सहित सभी वानर और विभीषण भी वह आ गए और यही नहीं अयोध्या के कुछ निवासी भी उनके साथ चले आये। लेकिन उस समय भगवान श्री राम ने हनुमान, जामवर और इनके सहित तीन और लोगों को मृत्यु लोक से आने से मना कर दिया। श्री राम जी ने हनुमान से कहा की तुम कलयुग तक मेरे नाम को जिन्दा रहना।आखिर में सभी वानर और अयोध्या नजर के वासियों ने श्री राम के साथ सरयू नदी में प्रवेश किया और वे सरयू नदी मै विलीन हो गए।
तो ये था श्री राम की मौत का राज।
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