ग्लोबल एयरलाइंस के पास सिर्फ 20% कम प्रदूषण फैलाने वाले विमान, भारत की स्थिति EU-US से बेहतर

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कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए पूरी दुनिया में बहस चल रही है। अमेरिका, यूरोप के विभिन्न देश चीन और भारत जैसे विकासशील देशों से कार्बन उत्सर्जन के स्तर को नीचे लाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि, जब इस दिशा में कदम उठाने की बात आती है तो अमेरिका और यूरोप ही पीछे रह जाते हैं। हाल के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में दुनिया भर में एयरलाइंस के पास औसतन 20 फीसदी ऐसे विमान हैं, जो प्रदूषण को कम करने में सक्षम हैं। वहीं, भारत के पास ऐसे 59 फीसदी विमान आधुनिक तकनीक वाले हैं।

यूरोपियन एयरोस्पेस एजेंसी एयरबस द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया के ज्यादातर देश इस वक्त ऐसे विमानों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनमें जबरदस्त ईंधन का इस्तेमाल होता है। इनमें से ज्यादातर में पुरानी पीढ़ी के इंजन हैं, जो काफी प्रदूषण फैलाते हैं। इसकी तुलना में भारतीय एयरलाइंस ने अपने बेड़े को आधुनिक बनाने और आधुनिक इंजन वाले विमानों को शामिल करने में भरोसा दिखाया है। भारत के पास फिलहाल 59 फीसदी ऐसे विमान हैं, जिससे ईंधन की खपत कम होती है।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में एयरबस ने दो दिवसीय शिखर सम्मेलन का आयोजन किया था। इसमें एजेंसी ने उन तरीकों पर चर्चा की, जिनसे विमानन प्रणाली द्वारा जलवायु को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। एजेंसी ने हाइड्रोजन ईंधन सेल इंजनों पर भी अपने काम का प्रदर्शन किया। एयरबस ने कहा कि वह 2035 तक शून्य-उत्सर्जन के लक्ष्य के साथ इन ईंधन कोशिकाओं को बाजार में लाएगी।

एयरबस की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, एयरलाइन कंपनियों का आधुनिकीकरण आने वाले दशकों में पूरा होने वाला है। इसके तहत 2041 तक वैश्विक स्तर पर 95 फीसदी यात्री विमान नई पीढ़ी के होंगे, जिससे प्रदूषण कम होगा। आने वाले वर्षों में भारत में केवल ऐसे ईंधन कुशल विमान बेड़े में शामिल किए जाएंगे। हाल ही में एयर इंडिया ने भी अपने बेड़े के विस्तार के लिए बड़े ऑर्डर दिए हैं। इसके अतिरिक्त, भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन वाहक इंडिगो (56 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी) सबसे बड़ी संख्या में हरे विमानों का संचालन करती है।

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