अब से बुनकर, कारीगर, गायक, नर्तक भी बनेंगे प्रोफेसर, उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए यूजीसी ने तैयार की गाइडलाइंस
अब बुनकर, कारीगर, गायक, नर्तक और बढ़ई भी कॉलेजों में प्रोफेसर बन सकते हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में इन-रेजिडेंस के तहत कलाकारों व शिल्पकारों को प्रोफेसर बनने का अवसर मिल रहा है। न उम्र की सीमा होगी और न ही डिग्री की जरूरत होगी। ये प्रोफेसर छात्रों को पढ़ाई के साथ रिसर्च और स्किल डेवलपमेंट में दक्ष बनाएंगे।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रोफेसरों के रूप में कलाकारों और कारीगरों को नियुक्त करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का मसौदा तैयार किया है। इसमें वे नियमित नहीं बल्कि उच्च शिक्षण संस्थानों में सेवाएं देंगे। विभिन्न मानदंडों को पूरा करने और एक चयन समिति द्वारा चुने जाने के बाद कॉलेज तीन साल तक सेवा दे सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, केंद्र या राज्य सरकार के पुरस्कारों वाले और अपने-अपने क्षेत्र में कम से कम पांच साल का अनुभव रखने वाले कलाकारों और कारीगरों को अवसर मिलेगा। कला, शिल्प, नृत्य, संगीत, ललित कला आदि के विशेषज्ञ आवेदन कर सकते हैं। जिसमें स्थानीय कलाकारों व कारीगरों को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।
– नियुक्तियां तीन स्तरों पर की जाएंगी
पहला स्तर परमेष्ठी गुरु (प्रसिद्ध कलाकार और शिल्पकार) होगा। उनके पास कम से कम 10 साल का अनुभव होना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार प्राप्त होना चाहिए। जबकि दूसरे लेवल पर परम गुरु (असाधारण कलाकार और शिल्पकार) होंगे। उनके पास कम से कम 10 साल का अनुभव होना चाहिए और उन्हें अपने काम के लिए केंद्र या राज्य सरकार से पुरस्कार प्राप्त होना चाहिए। जबकि, तीसरे स्तर के गुरु (कारीगर और कारीगर) होंगे। इस श्रेणी को अपने क्षेत्र में कम से कम पांच साल के अनुभव की आवश्यकता होगी।
– इस कैंडिडेट को मिलेगा मौका
मिट्टी के बर्तन, बांस, गन्ना, लकड़ी का काम, टेराकोटा, मधुबनी, चरखा, बुनाई, मुगल नक्काशी, लकड़ी का काम, कपड़े की छपाई, जैविक कपड़े की रंगाई, हाथ की कढ़ाई, कालीन बनाना, गाना, संगीत बजाना, गरबानी, सूफियाना लोक कला गायक और नर्तक, कलाकार कव्वाली , जुगलबंदी, रॉक बैंड, कथक, ओडिसी, भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, मणिपुरी, कथकली, भांगड़ा, गरबा, बिहू, फुगड़ी, योग, मेहंदी, रंगोली, कठपुतली आदि के कलाकार आवेदन कर सकते हैं।
इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत गाइडलाइंस तैयार की गई है।
इसका उद्देश्य छात्रों को सीखने के साथ-साथ कौशल विकास और भारतीय पारंपरिक कलाओं में शामिल करना है। छात्रों को स्थानीय कला और शिल्प से परिचित होने का अवसर भी मिलेगा।