पाकिस्तानी मीडिया ने पीएम शाहबाज की खिंचाई

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आर्थिक और राजनीतिक संकट से घिरे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने हाल ही में अरब न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि भारत और पाकिस्तान को शांत रहकर प्रगति पर ध्यान देना चाहिए। हालांकि इस दौरान भी वह कश्मीर का मुद्दा उठाने से नहीं चूके। उन्होंने कश्मीर में मानवाधिकारों की बात की। उन्होंने भारत के साथ संवाद करने की इच्छा भी जताई। हालांकि, कुछ घंटे बाद पाकिस्तान के पीएमओ ने स्पष्ट किया कि कश्मीर में धारा 370 को निरस्त करने की प्रक्रिया को बाधित किए बिना भारत के साथ कोई बातचीत नहीं हो सकती है।

पाकिस्तानी मीडिया पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के कश्मीर राग की तीखी आलोचना कर रहा है। विदेश मामलों के पत्रकार कामरान युसूफ ने पाकिस्तान के मशहूर अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून में एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने पीएम शरीफ को कश्मीर राग अलाप को छोड़कर ठंडे बस्ते में डालने की सलाह दी है.

युसूफ ने अपने लेख में लिखा है कि वरिष्ठ पत्रकार जावेद चौधरी ने हाल ही में पाकिस्तान के रिटायर्ड जनरल कमर जावेद बाजवा से मुलाकात की थी. उस मुलाकात में उन्हें कई ऐसी बातें पता चलीं, जो पब्लिक डोमेन में नहीं हैं। यूसुफ ने लिखा कि जनरल बाजवा के छह साल के कार्यकाल में चौधरी ने जमीन पर उतरे कई घटनाक्रमों की बात की. उन्होंने इनके बारे में जानकारी दी है।

लेख में चौधरी के हवाले से खुलासा किया गया है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अप्रैल 2021 में पाकिस्तान का दौरा करने वाले थे। इसके लिए जनरल बावाजा और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने रणनीति तैयार की थी. पीएम मोदी की यात्रा का उद्देश्य दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंधों में एक नया अध्याय शुरू करना था, लेकिन यह अमल में नहीं आया।

लेख में कहा गया है कि तत्कालीन आईएसआई डीजी लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच बैकचैनल वार्ता की एक श्रृंखला के बाद बैठक आयोजित की गई थी। इन्हीं कोशिशों की वजह से फरवरी 2021 में जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के बीच हुए संघर्षविराम समझौते का नवीनीकरण किया गया। घोषणा एक आश्चर्य के रूप में हुई क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई औपचारिक वार्ता नहीं हो रही थी। कई साल बाद दोनों पक्षों ने इस्लामाबाद और नई दिल्ली में एक साथ बयान जारी किए।

यूसुफ ने लिखा है कि भारत ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया था. जवाब में, पाकिस्तान ने राजनयिक संबंधों को डाउनग्रेड कर दिया और भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार को निलंबित कर दिया, लेकिन फरवरी 2021 में संघर्ष विराम के नवीनीकरण के बाद दोनों देशों के बीच विश्वास निर्माण की प्रक्रिया फिर से शुरू हो गई। इसके बाद मार्च में फिर से दोनों देशों के बीच व्यापार शुरू होना था और पीएम मोदी की मुलाकात होनी थी लेकिन न तो व्यापार शुरू हो सका और न ही पीएम मोदी की मुलाकात हो सकी.

यूसुफ ने लेख में लिखा है कि इसके पीछे कारण यह था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान को चेतावनी दी गई थी कि अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान में लोग सड़कों पर उतर आएंगे और खान को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ेगा. यूसुफ ने लिखा कि तत्कालीन विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इमरान खान को चेतावनी दी थी कि इस तरह के किसी भी कदम को कश्मीर को बेचने के तौर पर देखा जाएगा। इसलिए यह योजना दिवास्वप्न बनकर रह गई।

उन्होंने लिखा कि हाल के वर्षों में कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की साख बेशक कमजोर हुई है और इसके पीछे की वजह पाकिस्तान के अपने मूर्खतापूर्ण फैसले हैं। युसूफ ने लिखा है कि एक समय था जब भारत ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया था कि कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और इसे सुलझाया जाना चाहिए लेकिन अब भारत इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी नहीं करता है.

लेख में कहा गया है कि वर्षों बाद दोनों देशों के बीच शांति की कोशिश हुई, लेकिन तब तक भारत अमेरिका के और करीब आ गया था और उसके बढ़ते आर्थिक प्रभाव ने उसे मजबूत कर दिया था। इसके बाद कश्मीर पर भारत का रुख सख्त हो गया।

पाकिस्तानी पत्रकार ने यह भी लिखा है कि, ‘हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब भारत आर्थिक प्रगति कर रहा था, तब पाकिस्तान एक के बाद एक संकटों का सामना कर रहा था। यही वजह थी कि जनरल बाजवा ने सोचा कि अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने के लिए भारत के साथ शांति जरूरी है। इससे कई लोगों को झटका लग सकता है, लेकिन पाकिस्तान को कश्मीर पर बहस को अभी के लिए ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए और पहले अपने देश की चिंता करनी चाहिए।

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