जीवन की नैया को संतुलन में रखने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय ये सात शब्दों वाला तारक मंत्र है – ‘श्री राम, जय राम, जय जय राम।’ साधारण से दिखने वाले इस मंत्र में जो शक्ति छिपी हुई है, वह चर्चा का नहीं, अनुभव का विषय है। सब प्रकार के विधि-विधान से मुक्त होना इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। इसे कोई भी, कहीं भी, कभी भी कर सकता है। फल बराबर मिलता है। हमारा जीवन सौभाग्य और दुर्भाग्य की अनुभूतियों से भरा हुआ है। कभी हमें सौभाग्य का अनुभव होता है और कभी दुर्भाग्य का। सौभाग्य हमें निद्गिचत रुप से अच्छा लगता है परन्तु दुर्भाग्य से दुखी होना किसी को अच्छा नहीं लगता। सब सौभाग्य की ही अपेक्षा रखते हैं। दुर्भाग्य दूर करने के लिए व्यक्ति यथाद्गाक्ति पुरुषार्थ करता है। कर्म करने के ढंग प्रत्येक व्यक्ति के अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ लोग प्रभु का सहारा लेते हैं – उसकी पूजा-अर्चना कर उसकी कृपा पाने के लिए प्रयत्नद्गाील रहते हैं। कुछ लोग मादक द्रव्यों का प्रयोग करने लगते हैं। कुछ लोग अपने-अपने क्रिया-कलापों से मुक्ति पा जाते हैं और अन्य दुःखमय जीवन व्यतीत करते हुए मानसिक संत्रास के द्गिाकार हो जाते हैं। यदि देखा जाए तो यह सब मूलतः इस बात पर अधिक निर्भर करता है कि हम उसे अनुभव करते हैं अथवा नहीं। दुर्भाग्य की मात्रा और दुर्भाग्य होने की समयावधि इस बात पर निर्भर करती है कि दुःख का अनुभव हम कितनी गहनता से अथवा गहराई से करते हैं। दुर्भाग्य एक व्यक्ति के लिए पहाड़ के समान होता है। परंतु किसी अन्य के लिए वही एक साधारण सी बात भी हो सकती है। दुख अथवा दुर्भाग्य वास्तव में सौभाग्य के कम हो जाने का नाम है। इसी प्रकार दुःख का कम हो जाना सुख अथवा सौभाग्य का प्रतीक है। दोनों का जीवन में अनुभव आवद्गयक रुप से होता रहता है। यह नाव के दो चप्पुओं के समान है। यदि एक का भी संतुलन बिगड़ा तो समझिए कि जीवन की नाव डगमगा जाएगी। हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य आज यही है कि हम राम नाम का सहारा नहीं ले रहे हैं। हमने जितना भी अधिक राम नाम को खोया है, हमारे जीवन में उतनी ही विषमता बढ़ी है, उतना ही अधिक संत्रास हमें मिला है। एक सार्थक नाम के रुप में हमारे ऋषि-मुनियों ने राम नाम को पहचाना है। उन्होंने इस पूज्यनीय नाम की परख की और नामों के आगे लगाने का चलन प्रारंभ किया। प्रत्येक हिन्दू परिवार में देखा जा सकता है कि बच्चे के जन्म में राम के नाम का सोहर होता है। वैवाहिक आदि सुअवसरों पर राम के गीत गाये जाते हैं। यहॉ तक कि जीव के अंतिम समय में भी राम के नाम का घोष किया जाता है। राम सब में हैं। राम में ही द्गिाव और द्गिाव में ही राम विद्यमान हैं। राम नाम को द्गिाव का महामंत्र माना गया है।
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शान्ति पाने का यह कितना सरल उपक्रम है। फिर भी न जाने क्यों व्यक्ति इधर-उधर भटकता फिरता है? व्यक्ति के शरीर में 72,000 नाड़ी मानी गयी हैं। इनमें से 108 नाड़ियों का अस्तित्व हृदय में माना गया है। इसलिए मंत्र जप संखया 108 मानी गयी है। अर्थात एक माला। 108 जप संखया के अनेक महत्व हैं। यहॉ केवल इतना समझना है कि संखया से जप करना महत्वपूर्ण है। स्ुार, ताल तथा नाद और प्राणायाम से जप को और भी अधिक शक्तिद्गााली बनाया जाता है। मंत्र जाप में तीन पादों की प्रधानता है। पहले आता है मौखिक जाप। जैसे ही हमारा मन मंत्र के सार को समझने लगता है हम जाप की द्वितीय स्थिति अर्थात् उपांद्गाु में पहुॅच जाते हैं। इस स्थिति में मंत्र की फुसफुसाहट भी नहीं सुनी जा सकती। तृतीय स्थिति में मंत्र जप केवल मानसिक रह जाता है। यहॉ मंत्रोच्चार केवल मानसिक रुप से चलता है। इसमें दृष्टि भी खुली रहती है और मानसिक संलग्नता के साथ-साथ व्यक्ति अपने दैनिक कर्मों में भी लीन रहता है। यह अवस्था मंत्र के एक करोड़ जाप कर लेने मात्र से आ जाती है। यहीं से शाम्भवी मुद्रा सिद्ध हो जाती है और साधक की परमहंस की अवस्था पहुंच जाती है।
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एक लाख तारक मंत्र जप लेने से व्यक्ति में अनोखी अनुभूति होने लगती है। यहॉ से व्यक्ति के लिए दुर्भाग्य नाम की किसी भी वस्तु का अस्तित्व ही नहीं रह जाता। यदि ऐसा व्यक्ति मंत्र जप के बाद किसी बीमार व्यक्ति की भृकुटी में सुमेरु छुआ दे, तो उसे आद्गाातीत लाभ होने लगेगा। परन्तु इस प्रकार के प्रयोग के बाद माला को गंगा जल से शुद्ध करके फिर प्रयोग करना चाहिए। यहां माला के बारे में भी यह स्पष्टीकरण जरूरी है क्योंकि अज्ञानतावद्गा कुछ लोग इसका उचित प्रयोग नहीं कर पाते। मंत्र जप माला में 108 मनके होते हैं। माला कार्यानुसार तुलसी, वैजयन्ती, रुद्राक्ष, कमल गट्टे, स्फटिक, पुत्रजीवा, अकीक, रत्नादि किसी की भी हो सकती है। अलग-अलग कार्य सिद्धियों के अनुसार ही इन मालाओं का चयन होता है। तारक मंत्र के लिए सर्वश्रेष्ठ माला तुलसी की मानी जाती है। माला के 108 मनके हमारे हृदय में स्थित 108 नाड़ियों के प्रतीक स्वरुप हैं। माला का 109 वॉ मनका सुमेरु कहलाता है। व्यक्ति को एक बार में 108 जाप पूरे करने चाहिए। इसके बाद सुमेरु से माला पलटकर पुनः जाप आरम्भ करना चाहिए। किसी भी स्थिति में माला का सुमेरु लांघना नहीं चाहिए। माला को अंगूठे और अनामिका से दबाकर रखना चाहिए और मध्यमा उॅगली से एक मंत्र जपकर एक दाना हथेली के अन्दर खींच लेना चाहिए। तर्जनी उॅगली से माला का छूना वर्जित माना गया है। माला के दाने कभी-कभी 54 भी होते हैं। ऐसे में माला फेरकर सुमेरु से पुनः लौटकर एक बार फिर एक माला अर्थात 54 जप पूरे कर लेना चाहिए जिन्हें अधिक लगन है वे 1008 नाम जप एक बैठक में करें। मानसिक रुप से पवित्र होने के बाद किसी भी सरल मुद्रा में बैठें जिससे कि वक्ष, गर्दन और सिर एक सीधी रेखा में रहे। मंत्र जप पूरे करने के बाद अन्त में माला का सुमेरु माथे से छुआकर माला को किसी पवित्र स्थान में रख देना चाहिए। मंत्र जप में कर-माला का प्रयोग भी किया जाता है।
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जिनके पास कोई माला नहीं है वह कर-माला से विधि पूर्वक जप करें। कर-माला से मंत्र जप करने से भी माला के बराबर जप का फल मिलता है। इससे श्रेष्ठ जप यह माना गया है कि श्वास-निद्गवास में निरन्तर राम नाम निकलता रहे। जहॉ तक सम्भव हो हर घड़ी, हर क्षण राम का नाम अन्तर्मन में रटा जाता रहे जिससे कि रोम-रोम में राम नाम समा जाए। ठीक ऐसे ही जैसे कि ”मारुति के रोम रोम में बसा राम नाम है।” जप के अतिरिक्त राम मंत्र को लिखकर भी आत्मद्गाुद्धि की जा सकती है। एक लाख मंत्र एक निद्गिचत अवधि में लिखकर यदि पूरे कर लिए जाएं तो अन्तर्मन उज्जवल बनता है। व्यक्ति यदि चार करोड़ मंत्र मात्र राम नाम लिखकर अथवा जपकर पूर्णकर लें तो उसके ज्ञान-चक्षु खुल जाते हैं। वह निद्गिचत ही भवसागर को पार कर जाता है। परन्तु यह कार्य सरल नहीं है क्योंकि मन बहुत चंचल है एक जगह स्थिर ही नहीं होता। यदि प्रत्येक सॉस में राम नाम लिया जाये तो 4 करोड़ की संखया लगभग 5 वर्ष में पूरी की जा सकती है। यह तभी संभव है जब प्रत्येक सॉस में अन्य कोई विचार न लाए। स्वयं अनुमान करें कि यह कितना कठिन है। इसीलिए पुण्यफल एक-दो जन्मों में नहीं मिल पाता। इसके लिए जन्म-जन्मान्तर का समय चाहिए। जितनी कम आयु से नाम का जप प्रारम्भ कर दिया जाए उतना ही अच्छा है क्योंकि एक अवस्था के बाद अभ्यास की कमी के कारण शरीर भी कार्य करने से आनाकानी करने लगता है।
नाम जप का लेखा-जोखा रखने के लिए अनेक स्थानों में निःस्वार्थ भाव से राम नाम के बैंक भी चल रहे हैं। कुछ लोग तो राम नाम लिखने की लेखन पुस्तिका निःद्गाुल्क वितरित कर रहे हैं। आप भी आज से मंत्र जप का सहारा लेकर दुर्भाग्य को दूर भगाएं और राममय हो जाएं – श्री राम, जय राम, जय जय राम ।
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बहुत ही अच्छे भाई साहब राम नाम के बारे में जो जानकारी दी और राम नाम की महिमा को भी आपने बताया । आपको मेरा सदर नमन
धन्यवाद, सुरेन्द्र जी,
एक शानदार उपन्यास आपको जरूर पसंद आएगा.
रक्षक राम (उपन्यास)–दशकों में कोई ऐसी पुस्तक (उपन्यास) आती है, जो जन-मानस को झकझोर देती है और उनमें एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर उन्हें जीवन की सफलता की ओर ले जाती है। इस पुस्तक से आपका जीवन बदल जायेगा, युवा खास कर एक बार अवश्य पढ़े. उपन्यास ऑर्डर करने के लिए दिए गए लिंक पर संपर्क करें– http://www.amazon.in/Rakshak-Ram-Suraj-Patel/dp/9351869113/ref=sr_1_1?s=books&ie=UTF8&qid=1468413647&sr=1-1
अच्छा लेख है. एक पुस्तक–
रक्षक राम (उपन्यास)–दशकों में कोई ऐसी पुस्तक (उपन्यास) आती है, जो जन-मानस को झकझोर देती है और उनमें एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर उन्हें जीवन की सफलता की ओर ले जाती है। इस पुस्तक से आपका जीवन बदल जायेगा, युवा खास कर एक बार अवश्य पढ़े. उपन्यास ऑर्डर करने के लिए दिए गए लिंक पर संपर्क करें– http://www.amazon.in/Rakshak-Ram-Suraj-Patel/dp/9351869113/ref=sr_1_1?s=books&ie=UTF8&qid=1468413647&sr=1-1