उम्र चालीस के बाद शारीरिक-मानसिक परेशानी से कैसे निकले
अधेड अवस्था में व्यायाम, योगासन, प्राणायाम, ध्यान और कुछ समय पूजा-पाठ कने से पर्याप्त शारीरिक-मानसिक लाभ प्राप्त होता है। पूजा-पाठ के संबंध में भी अति करना किसी भी दृष्टिकोण से लाभदायक नहीं होता। परमात्मा ने हमें इस संसार में अपने परिवारिक तथा सामाजिक कर्मो को पूरा करने के लिए भेजा है, न कि परमात्मा की प्रशंसा या पूजा में लगा रहने के लिए।
वास्तव में दीन-दुखियों की सेवा करना ही परमात्मा की सच्ची सेवा है। पूजा-पाठ तथा ध्यान नियमित रूप से आधा या एक घंटा करना सभी प्रकार से लाभदायक होता है। लेकिन इससे अधिक किसी सिद्ध गुरू के बिना करना हानिकारक हो सकता है। इसके अतिरिक्त यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि स्त्री हो या पुरूष, सभी के लिए यह संसार एक कर्मभूमि है। इसलिए जीवन के अंतिम क्षण तक सभी को अपने कर्तव्यों को पूरा करते रहना आवश्यक है। अतः यह कहा जा सकता है। कि सक्रियता ही जीवन है और निष्क्रियता मृत्यु।
उपयोगी उपाय
चालीस वर्ष की आयु के बाद स्त्री-पुरूष दोनों को ही युवावस्था की तुलना में शीध्र मानसिक तनाव हो जाता है। यदि उसे प्रारंभ में ही न रोका जाए तो वह घातक सिद्ध हो सकता है। इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि मानसिक तनाव के बढ़ते ही आप उसे नियंत्रित करने का प्रयत्न करें। इसके लिए निम्नलिखित उपाय उपयोगी पाए गए हैं-
ठंडा पानी पीजिए, कम से कम एक गिलास। यदि किसी फल का रस पी सकते हैं। तो उसे धीरे-धीरे पीजिए। लेकिन चाय, कॉफी, शराब, सीगरेट आदि का उपयोग मत कीजिए क्योंकि उससे थोड़ी देर बाद आपका तनाव बढ़ सकता है।
अपने इष्टदेव-देवी का ध्यान कीजिए। उनसे संबंधित मंत्र का जप करिए।
एकांत में जाकर आराम से आंखें मंदूकर लेट या बैठ जाइए। नाक से गहरी सांस लीजिए और मुंह से छोडिए। पैर के पंजो से लेकर सिर तक प्रत्येक अंग को शनैः शनैः शिथिल करते जाइए।
सीटी बजाइए या कोई मनपंसद धुन, दोहा अथवा कविता गुनगुनाइए।
अपनी दोनों हथेलियों को आपस में जोर से रगडिए। फिर उन्हें धरती, फर्श की ओर पलटकर यह ध्यान करिए कि आपका सारा तनाव सूक्ष्म रूप में धरती में लीन होता जा रहा है।
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