साधु काला, भगवा और सफेद वस्त्र क्यों पहनते हैं? इनके पीछे की वजह बेहद दिलचस्प है
सदियों से हिंदू धर्म में संत बहुत सम्मान दिया जाता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि जिन पर मुनियों और तपस्वियों की कृपा होती है, उनके घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है, लेकिन जिन पर ऋषि-मुनि नाराज होते हैं, उन्हें देखकर वे भी दरिद्र हो जाते हैं। भारत में कुंभ मेले में सबसे ज्यादा साधु संत होते हैं। इस दौरान कई साधु-संन्यासी अलग-अलग रंग के कपड़े पहने नजर आते हैं। अलग-अलग साधु अलग-अलग रंग के कपड़ों में नजर आ रहे हैं। इसके पीछे क्या वजह है? आइए जानें एक ज्योतिषी और वास्तु सलाहकार से।
साधु अलग-अलग रंग के कपड़े क्यों पहनते हैं?
‘साधु’ शब्द के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो इसका अर्थ सज्जन या सज्जन व्यक्ति होता है। केसर शैव और शाक्य मुनियों द्वारा पहना जाता है। केसरिया रंग को ऊर्जा और त्याग का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि केसरिया रंग के कपड़े पहनने से मन पर नियंत्रण होता है और मन शांत रहता है।
दुनिया के सबसे पुराने रीति-रिवाजों में भी हिंदू धर्म का नाम आता है। बौद्ध धर्म और जैन धर्म की उत्पत्ति हिंदू धर्म से हुई है। ऐसा माना जाता है कि जैन धर्म में भी साधु सन्यासी हैं। जैन मुनि और साधु हमेशा सफेद वस्त्र धारण करते हैं। इसके अतिरिक्त जैन मुनियों में दो प्रकार के मुनि हुए हैं। पहला दिगंबर जैन और दूसरा श्वेतांबर जैन। दिगंबर जैन मुनि अपना पूरा जीवन बिना कपड़ों के व्यतीत करते हैं, जबकि श्वेतांबर जैन मुनि सफेद वस्त्रों में रहते हैं।
भारतीय संस्कृति में कई साधुओं को भगवा और सफेद वस्त्र पहने देखा जाता है। इसके अलावा हममें से कई लोगों ने साधुओं को काले कपड़े पहने देखा है। ऐसे संत स्वयं को तांत्रिक नाम देते हैं। माना जाता है कि काले वस्त्र धारण करने वाले ये साधु तंत्र साधना में निपुण होते हैं। कभी-कभी वे यह भी दावा करते हैं कि वे अपने तंत्र-मंत्र से कई असाध्य रोगों का इलाज कर सकते हैं। ये साधु काले वस्त्र के अलावा रुद्राक्ष की माला भी पहनते हैं।