साधुओं एवं बच्चों के मृत शरीर को क्यो नहीं जलाते हैं, ये है इसका रहस्य
जीवन के बाद मृत्यु निश्चित
यह तो सब जानते हैं कि एक ना एक दिन हम सभी को मरना ही है। यदि वे इस ज़िंदगी में आए हैं तो निश्चित ही एक समय ऐसा आएगा जो उनकी मृत्यु का पैगाम लेकर आएगा ।
लेकिन फिर भी लोग अपनी लंबी उम्र की कामना करते हैं। कुछ लोग तो भगवान से अमर हो जाने की भी मन्नत मांगते हैं। लेकिन यदि अमर नहीं तो मरने से पहले वे सभी कार्य तथा इच्छाओं को पूर्ण करना चाहते हैं।
मृत शरीर का अंतिम संस्कार
कोई व्यक्ति के मृत शरीर को जलाता है तो कोई ज़मीन में दफना देता है। कुछ लोग तो उस शरीर को प्राकृतिक जीवों द्वारा खाए जाने के लिए भी छोड़ देते हैं।
आज हम इस आर्टिकसल में साधुओं एवं बच्चों के मृत शरीर को क्यो नहीं जलाते हैं, इस पर बात करेंगे।
साधुओं एवं बच्चों को नहीं जलाते।
हिन्दू धर्म में ही महान साधुओं एवं बच्चों को जलाने की प्रक्रिया नहीं है। कहते हैं संत-महात्मा आम मनुष्य से बढ़कर हैं इसलिए उन्हें कमल की भांति बैठाकर दफनाया जाता है। यह ऐसे महान पुरुष होते हैं जिनका अपने शरीर से कोई लगाव नहीं होता इसलिए उन्हें जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
इसके अलावा नन्हें बच्चों के संदर्भ में भी ऐसा माना जाता है कि बच्चे इस संसार में आने वाले फरिश्ते होते हैं। उन्हें आए हुए अभी ज्यादा वक्त भी नहीं हुआ होता जिसकी वजह से वे अपने शरीर और दुनियावी रीतियों से कम बंधे होते हैं। यही कारण है कि नवजात बच्चों का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता।
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