रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है? आपके लिए भी पढ़ना है बेहद जरूरी
आप अक्सर सुनते होंगे कि रुपया कमजोर हो गया या मजबूत हुआ है. क्या आप जानते हैं कि इसका मतलब क्या है? अगर रुपया कमजोर हुआ है तो क्या इससे आपको फायदा होगा? या अगर यह मजबूत हुआ तो क्या आपको कुछ नुकसान होगा? आइए इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं.
रुपया कमजोर या मजबूत क्यों होता है?
रुपये की कीमत पूरी तरह इसकी मांग एवं आपूर्ति पर निर्भर करती है. इस पर आयात एवं निर्यात का भी असर पड़ता है. दरअसल हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे लेनदेन यानी सौदा (आयात-निर्यात) करते हैं. इसे विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं. समय-समय पर इसके आंकड़े रिजर्व बैंक की तरफ से जारी होते हैं.
विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.
अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.
रुपये की कहानी
एक जमाना था जब अपना रुपया डॉलर को ज़बरदस्त टक्कर दिया करता था. जब भारत 1947 में आज़ाद हुआ तो डॉलर और रुपये का दम बराबर का था. मतलब एक डॉलर बराबर एक रुपया. तब देश पर कोई कर्ज़ भी नहीं था. फिर जब 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना लागू हुई तो सरकार ने विदेशों से कर्ज लेना शुरू किया और फिर रुपये की साख भी लगातार कम होने लगी.
1975 तक आते-आते तो एक डॉलर की कीमत 8 रुपये हो गई और 1985 में डॉलर का भाव हो गया 12 रुपये. 1991 में नरसिम्हा राव के शासनकाल में भारत ने उदारीकरण की राह पकड़ी और रुपया भी धड़ाम गिरने लगा. और अगले 10 साल में ही इसने 47-48 के भाव दिखा दिए.
रुपये का क्या है खेल?
रुपये और डॉलर के खेल को कुछ इस तरह समझा जा सकता है. मसलन अगर हम अमरीका के साथ कुछ कारोबार कर रहे हैं. अमरीका के पास 73,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. डॉलर का भाव 73 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है.
अब अगर हमें अमरीका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 7,300 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.
अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में बचे 900 डॉलर और अमरीका के पास हो गए 73,700 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 67,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में जो 100 डॉलर थे वो भी उसके पास पहुंच गए.
इस मामले में भारत की स्थिति तभी ठीक हो सकती है अगर भारत अमरीका को 100 डॉलर का सामान बेचे….जो अभी नहीं हो रहा है. यानी हम इंपोर्ट ज़्यादा करते हैं और एक्सपोर्ट बहुत कम.
करेंसी एक्सपर्ट एस सुब्रमण्यम बताते हैं कि इस तरह की स्थितियों में भारतीय रिज़र्व बैंक अपने भंडार और विदेश से डॉलर खरीदकर बाजार में इसकी पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करता है.