सच्ची रोमांचक कथा – अभिशप्त विशालकाय जहाज
उस भारी भरकम युद्धपोत पर निर्माण कार्य लगभग पूरा होने को था। पूरा होने पर वह युद्धपोत जर्मन नौसेना की यूनिटों का सबसे अधिक शक्तिशाली युद्धपोत बनने वाला था। केवल कुछ सप्ताह का ही काम बाकी था कि उस जहाज के अगले भाग को सहारा देने के लिए बनाई गई सीढ़ियां टूट गईं और वह विशालकाय जहाज एक ओर लुढ़क गया। इस दुर्घटना में 61 कर्मचारियों की मृत्यु हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। लेकिन, इतना होने पर भी उस युद्धपोत का निर्माण कार्य रुका नहीं। लुढ़कने से क्षतिग्रस्त जहाज की मरम्मत की गई और अंततः उसका निर्माण कार्य पूरा हो गया। अक्टूबर, 1936 को इस जहाज को जर्मन के तानाशाह हिटलर की उपस्थिति में पानी में उतारे जाने का निर्णय किया गया।
इसके लिए सारी तैयारियां की जाने लगीं। उद्घाटन समारोह की सब तैयारी पूर्ण हो गई थी। बस, निश्चित दिन जहाज को पानी में उतारना भर शेष रह गया था। किन्तु उद्घाटन वाले दिन से एक दिन पहले, यानि 2 अक्टूबर, 1936 को वह युद्धपोत रहस्यमय ढंग से अपनी सहारा देने वाली लाइन से कट गया। तथा स्लिप से वे खिसक कर अपने आप नीचे समुद्र में जा पहुंचा। स्लिप से वे नीचे खिसकने के बाद वह विशालकाय जहाज वहां खड़े अन्य कई छोटे जहाजों से टकराया। इस टकराहट से कुछ छोटे जहाज नष्ट हो गए। स्वयं वह विशाल जहाज भी क्षतिग्रस्त हुआ। इस दुर्घटना में भारी नुकसान हुआ। इस दुर्घटना में भारी नुकसान हुआ।
इस प्रकार ‘स्काटन होरस्टा’ नामक वह जहाज अभिशप्त समझा जाने लगा। गोदी कर्मचारी तथा नाविक सभी उसके बारे में जानकर दंग रह गए। सभी लोग इसे प्रारंभ से ही मनहूस समझने लगे। खैर, इन सब दुर्घटनाओं के बावजूद उस जहाज की पुनः मरम्मत की गई और रंग रोगन आदि करके उसे दुरस्त किया गया। तत्पश्चात एक दिन बड़ी धूमधाम से उसका उद्घाटन भी कर दिया गया।
हिटलर उस युद्धपोत, स्काटन होरस्टा से काफी आशाएं लगाए हुए था। वह उस जहाज से काफी युद्ध संबंधी काम लेना चाहता था, इसलिए उसे युद्धपोत के रुप में प्रयुक्त किया जाने लगा। जब जहाज हरकत में आया, तो हिटलर ने उसके द्वारा कई टन विस्फोटक सामग्री ले जाने का आदेश जारी किया। हिटलर के इस आदेश पर पालन शुरु हो गया। जहाज पर विस्फोटक सामग्री की लदाई शुरु हो गई। निश्चित सामग्री लेकर स्काटन होरस्टा चल दिया, लेकिन पोलिश नगर के पतन के बाद जब वह बमबारी करने को हुआ, तो हमले में स्वयं फंस गया। इसमें जहाज के चालक दल के 21 सदस्य मारे गए। उसकी लम्बी दूरी तक मार करने वाली एक तोप के फट जाने से 9 कर्मचारी उड़ गए। साथ ही, एक तोप की नाली में घुटन से 12 अन्य व्यक्ति मर गए।
इसके बाद स्काटन होरस्टा को अन्य नाजी युद्ध पोतों के साथ ओसलो बंदरगाह पर बमबारी कि लिए भेजा गया। युद्ध बेड़ा चल पड़ा घमासान लड़ाई हुई। विचित्र बात यह रही कि इस दौरान शत्रु दल के तोपखाने से की गई गोलाबारी का प्रत्येक गोला जादुई गोले की तरह जाकर इस अभिशक्त युद्धपोत स्काटन होरस्टा को लगा।
इससे इस जहाज में आग लग गई और मजबूर होकर उसे वापस भेज दिया गया। वह लड़खड़ाते हुए जर्मनी वापस लौट चला। इस वापसी यात्रा में भी दुर्भाग्य ने उसका साथ नहीं छोड़ा। जब वह जर्मनी लौटते हुए एलबो के निकट पहुंचा, तो एक और जहाज एस.एस. ब्रीमैन के साथ जा टकराया। इस दुर्घटना में स्काटन होरस्टा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और एस.एस.ब्रीमैन तो पानी में डूब ही गयी।
जर्मनी वापस आ जाने पर स्काटन होरस्टा की पुनः मरम्मत के काम में वर्षों लग गए और 1943 में वह पुनः चालू हालत में लाया गया। इस बार इसे उत्तरी धुव में मित्र राष्ट्रों के जहाजी बेडे़ पर हमला करने के लिए भेजा गया।
पूरी तैयारी करके स्काटन होरस्टा को विदा कर दिया गया। जब वह नार्वे के पास पहुंचा, तो वहां उसका स्वागत विपक्षी दल के आर.एन. युद्धपोत ड्यूक ऑफ आर्क के साथ चार अन्य विध्वंसक तथा एक युद्धपोत भी था। इन विपक्षी युद्धपोतों ने स्काटन होरस्टा पर जमकर गोलाबारी की। गोले 16 हजार गज की दूरी से भी बरसाए गए।
न जाने कैसे स्काटन होरस्टा ने अपना रास्ता बदल दिया और वह स्वयं जाकर विपक्षी दल के युद्धपोतों की गोलों की बौछार के बीच जा फंसा। ऐसा किस प्रकार हुआ, कोई न जान पाया क्योंकि चालक दल के सदस्य उसे सुरक्षित दिशा में ले जाने चाह रहे थे, जबकि स्काटन होरस्टा किसी अनजानी शक्ति से बंधा गोलों की मार के भीतर पहुंच गया।
उस समय तो उस पर दुर्भाग्य पूरी तरह हावी हो चुका था। लगता था, जैसे कुछ अदृश्य, शक्तियां स्काटन होरस्टा को विध्वंस की राह पर ले चली हों। विपक्षी विध्वंसकों ने उसे पर जमकर गोले बरसाए। इन गोलों की मार से उस जहाज के अगले भाग के टुकड़े टुकड़े हो गए। जहाज अपना संतुलन खो बैठा और वह डूबने लगा और शीघ्र ही स्काटन होरस्टा समुद्र की अतल गहराइयों में विलीन हो गया।
उस पर उस समय 1800 व्यक्ति सवार थे। उनमें से सिर्फ 36 ही बच सके और बाकी सब मारे गए। इन बचे 36 लोगों में से दो अधिक देर तक जीवित न रह सके। वे जब किसी तरह बचकर तू तैरकर समुद्र के किनारे पहुंचे और आपातकालीन तेल हीटर जलाने का प्रयास करने लगे। इतने में ही उन्हें कहीं से आकर गोला लगा और वे दोनों भी मर गए। इस प्रकार अभिशप्त जहाज स्काटन होरस्टा का नामोनिशान ही समाप्त हो गया।
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