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इन तीन कारकों के कारण नव युगल जोड़ों से नाराज हो सकते है शनि

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शनि को विच्छेदात्मक प्रभाव/पृथकताजनक प्रभाव वाला ग्रह माना जाता है। जब शनि की पंचम भाव व पंचमेश एवं शुक्र पर दृष्टि होगी तो निश्चय रूप् से जातक को प्रेम में शनि से धोखा खाना पडेगा।

जप्मांग चक्र में शनि का जितना प्रभाव प्रेम कारकों पर बढता जाता है उतना  ही प्रेम कमजोर होता जाता है।
सूर्य पुत्र शनि के बारे में सभी जन पर्याप्त वाकिफ है। शनि का नाम सुनते ही प्रत्येक जातक भय से आक्रान्त हो जाता है। हो भी क्यों नही जब प्रथम पूजनीय गणेश जी पर भी शनि की दृष्टि पडी तो उनका सिर भी शरीर से पृथक हो गया तो मानव की तो औकात ही क्या है? इसके अनुसार शनि की दृष्टि स्थिति से अधिक हानिकारक है। शनि को दुःख, अभाव का कारक ग्रह माना जाता है। जन्म समय में जो गृह बलवान हो उसके कारकत्वों की वृद्धि होती है एवं निर्बल होने पर हीनता होती है। पर शनि के विषय में विपरीत है। शनि निर्बल होने पर अधिक दुःख व बलवान होने पर दु:ख का नाशक मानते है।
पूर्व जन्म के शुभाशुभ कर्मो के अनुसार ही इस जन्म में जातक को शुभाशुभ फल नियत समय पर प्राप्त होते हैं। इन पूर्वोपार्जित फलों के भुगतान हेतु ही किसी जातक का जन्म निश्चित समय पर होता है। जिसका अध्ययन ज्योतिष में जन्मांग चक्र के बारह भावों में जातक के संपूर्ण जीवन चक्र का ब्योरा निर्धारित रहता है जो दशाकाल एवं गोचर के अनुसार जातक को प्राप्त होता रहता है। जन्मांग चक्र में प्रथम भाव सम्पूर्ण व्यक्तित्व का, तृतीय भाव इच्छा का, चतुर्थ भाव हृदय का, पंचम भाव प्रेम का, सप्तम भाव जीवनसाथी का, नवम भाव भी पंचम भाव से पंचम होने के कारण प्रेम का एवं एकादश भाव संपूर्ण उच्चतर लाभ या जीवनसाथी के प्यार का भाव है। जन्मांग चक्र में चंद्र को मन का, शुक्र को प्रेम का कारक ग्रह मानते है। पंचम भाव व पंचमेश भी प्रेम के कारक बनते हैं शनि को विच्छेदात्मक प्रभाव/पृथकताजनक प्रभाव वाला ग्रह माना जाता है। जब शनि की पंचम भाव व पंचमेश एवं शुक्र पर दृष्टि होगी तो निश्चय रूप् से जातक को प्रेम में धोखा खाना पडेगा। जातक को किन्ही परिस्थितियों के कारण अपने प्रेम को त्यागना पडेगा। चाहे परिस्थितियों के कुछ भी बन जायें। लेकिन इसके मूल में शनि का दृष्टि प्रभाव अधिक नजर आया है।  यदि शनि की इन तीनों कारकों पर दुष्टि हो तो प्रेम कभी सफल नही हो सकता।

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