हमारे भारत के एक मात्र ऐसा शहीद जिसके किस्से पाकिस्तान सुनाता है
आज हम आपको बताएँगे भारत के उस जाबाज़ सैनिक की कहानी जो भारत ही नही अपितु पाकिस्तानियों के मन मे भी अमर है।
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भारत की फौज, दुनिया की ताकतवर फौजों मे एक गिनी जाती है। हर भारतीय नौजवान का सपना होता है कि वो भी एक बार भारतीय सेना कि वर्दी पहने। लेकिन सबकी ये इच्छा पूरी नहीं हो पाती।
पर जिसकी भी पूरी होती है वो जरूर अपने आप मे कुछ खास रहता होगा क्यूंकी कोई सिर्फ पैसे के लिए सेना कि नौकरी नहीं करता। सेना मे जाने के लिए एक जुनून होता है जो उसे इस देश पर मर मिटने के लिए मजबूत बना देता है।
आज हम बात करेंगे एक ऐसे ही जवान कि जिसने सबसे कम उम्र मे मरणोपरांत परमवीर चक्र पाने का गौरव हासिल किया। उनका नाम है सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल। अरुण को यह सम्मान 1971 की लड़ाई मे पाकिस्तान के खिलाफ वीरता से लड़ने के लिए दिया गया था। अफसोस हमने उस लड़ाई मे अरुण को खो दिया। लेकिन उस भारत माँ के सपूत ने जीते जी पाकिस्तानियों के दाँत खट्टे कर दिये।
पाकिस्तान के एक ब्रिगेडियर ख्वाजा मोहम्मद नसीर ने, जो 1971 की जंग मे उस समय अरुण का सामना कर रहे थे , यह बात बहुत बाद मे 2001 मे अरुण के पिता ब्रिगेडियर एम एल खेत्रपाल को बताई। ब्रिगेडियर नसीर ने कहा की उस जंग मे मैंने ही आपके बेटे अरुण को मारा था। उस समय ये स्थिति थी कि या तो वो बचते या मैं। बताते हुये वो काफी उदास हो गए और बहुत शर्मिंदा भी हुये। लेकिन ब्रिगेडियर खेत्रपाल ने उनसे एक बात कही जो केवल एक फौजी ही बोल सकता है। उन्होने कहा कि आप अपना फर्ज़ निभा रहे थे और वो अपना। आपकी कोई गलती नहीं है, कृपया आप शर्मिंदा न हो।
अरुण के आखिरी शब्द थे-
सर अभी मेरी गन फायर कर रही है। जब तक ये चलती रहेगी तब तक मै फायर करता रहूँगा।
अरुण कि बहादुरी पाकिस्तान मे इतनी प्रसिद्ध है कि पाकिस्तान की डिफेंस वैबसाइट पर अरुण की कहानी को भी जगह दी गयी है।