घर में आए अतिथि का सम्मान अवश्य करना चाहिए, नहीं तो वह हमारी यह अनमोल वस्तु छीन लेगा
हिंदू धर्म में अतिथि सत्कार गृहस्थों के लिए अनिवार्य बताया गया है। ऐसा भी कहा जाता है कि अगर गलती से भी कोई दुश्मन हमारे घर मेहमान बनकर आ जाए तो हमें उसका भी सम्मान करना चाहिए। हमारे शास्त्रों में भी आतिथ्य के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। वेदों से लेकर महाभारत तक गृहस्थों के लिए निर्धारित नियमों में अतिथि का आदर करना अनिवार्य किया गया है। आगे जानिए अतिथि के बारे में क्या कहते हैं शास्त्र…
महाभारत के अनुसार…
अतिथिर्यस्य भग्नासो गृहत् प्रतिनिवर्तते।
स दत्ता दुष्कृतम तस्मै पुण्यमदय गच्छति। (महाभारत)
अर्थ – यदि कोई अतिथि किसी गृहस्थ के घर से बिना आदर के जाता है तो उसे निकट भविष्य में इसका परिणाम भुगतना पड़ता है। ऐसा अतिथि अपने पापों को गृहस्थ को दे देता है और पुण्य सहित विदा हो जाता है। इसलिए गृहस्थों को कभी भूलकर भी अतिथि का अनादर नहीं करना चाहिए। जब कोई अतिथि हमारा पुण्य हर लेता है तो निश्चित रूप से हमारे जीवन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
चाणक्य नीति के अनुसार…
आचार्य चाणक्य ने भी अपनी नीति में अतिथि सत्कार के बारे में बहुत कुछ लिखा है। चाणक्य नीति के अनुसार यदि कोई शत्रु भी हमारे घर आ जाए तो उसका पूरा सम्मान करना चाहिए। जब तक व्यक्ति घर में रहता है, तब तक उसके साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। मुमकिन है कि वह आपका दोस्त बन जाए। ऐसा न होने पर भी उसके मन में आपके प्रति शत्रुता की भावना कम हो सकती है।
श्रीमद्भागवत के अनुसार…
श्रीमद्भागवत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में परमात्मा का अंश होता है। यदि यह सत्य माना जाए तो घर आया हुआ व्यक्ति भी परमपिता परमात्मा का ही अंश है। इसलिए कहा जाता है कि घर आने वाले अतिथि का स्वागत अतिथि के रूप में नहीं बल्कि देवता के रूप में करना चाहिए। जो ऐसा नहीं करते वे परोक्ष रूप से परमेश्वर का अपमान करते हैं। परमेश्वर का अपमान करना भविष्य में हमारे लिए परेशानी का कारण बन सकता है। इसलिए घर आए मेहमान के स्वागत में कोई कमी नहीं रखनी चाहिए।