गाय गोहरी परम्परा का समापन होता है एवं सभी लोग अपने गंतव्य को लौट जाते है, एक अनोखी आदिवासी परंपरा
भारत एक विविधताओ से भरा देश है जहा हर राज्य की अपनी आपकी एक संस्कृति है परम्परा है| यहाँ कई प्रकार की लोक कलाए व् प्रथा प्रचलित है| इसी कड़ी में आज हम बात करते है मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के जहा एक
परम्परा का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है और इस पारम्पर को गाय गोहरी कहा जाता है| वैसे तो इसके नाम से ही विदित हो जाता है की यह भारत के पवित्र पशु गाय से सम्बंधित कोई परंपरा है
आज हम आपको इस अनोखी परंपरा के विषय में कुछ रोचक जानकारी देते है| यह परंपरा झाबुआ जिले के आदिवासी समुदाय द्वारा आयोजित की जाती है जिसमे दीपावली के दुसरे दिन यानि गोवर्धन पूजा वाले दिन| गाव की सारी
गायो को रंग बिरंगी छाप लगाकर तथा सजाकर उनके मालिको द्वारा गाव के एक खुले मैदान में लाया जाता है जहा सभी गाव के लोग एक नियत समय पर एकत्रित होकर इस आयोजन में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते है
गायो को एकत्र करने के बाद वहा मन्नतधारी, जिन्होंने ने मन्नत ली थी की वो आज इस गाय गोहरी परम्परा का हिस्सा बनेगे, आते है| एक छोर से सभी गायो को भगाया जाता है और इन दौड़ती गायो के पैरो के नीचे ये मन्नतधारी
लेट जाते है और एक एक कर सारी गाये इनके शारीर के ऊपर से निकल जाती है इस प्रकार यह क्रम बचे हुए मन्नतधारीयो के साथ भी दोहराया जाता है
एवं इस बीच दुसरे ग्रामीण जन शंखनाद एवं ढोल से इन सभी का स्वागत करते है इन मन्नतधारीयों का कहना है की इस प्रकार से उन्हें किसी भी प्रकार की कोई चोट नहीं लगती है एवं वह अपने आप को बहुत ही धन्य मानते है कि
उन्हें इस परम्परा का हिस्सा बनने का अवसर प्राप्त हुआ|, और जब जब उन्हें इसका हिस्सा बनने का अवसर प्राप्त होगा वो इसका लाभ जरुर लेंगे