दन्त सुरक्षा के सही उपचार
किसी भी रोग के उपचार का सबसे अच्छा उपचार है कि उन कारणों को त्याग देना है जिनसे कोई रोग पैदा हुआ है। अतः सबसे पहले अपनी दिनचर्या ठीक की जाऐ। सोने या उठने के बाद सुबह को मुखशुद्धि करने के बाद दातुन करना चाहिए। उसके बाद ही चाय आदि का सेवन करना चाहिए।
उपचार
- रोग की शुरुआत में नीम बबूल की दातुन करनी चाहिए।
- दातुन के बाद तिल या सरसों का तेल सेंधा नमक मिलाकर लगाना चाहिए।
- अखरोट के फल का छिलका या जड़ का चूर्ण बनाकर उसे दाँतों से मलना भी बहुत लाभ पहुँचाता है।
- सूजन व लालिमा युक्त मसूड़ों पर जात्यादि तेल या इरमेदादि तेल अंगुली से रोजाना मलना चाहिए।
- खाने के बाद फिटकरी के पानी से कुल्ले करे।
- संक्रमण होने पर पोटेशियम परमेगनेट एंव फिटकरी के पानी का घोल से भोजन के बाद कुल्ले करना चाहिए।
- बड़,गूलर,एवं मौलश्री की छालों का काढ़ा बनाकर गुनगुना-2 लेकर सुबह व शाय को गरारा व कुल्ला करें।
- तेज टूथब्रुश का प्रयोग आपके दाँतों को नुकसान पहुँचा सकता है।
- कचनार की छाल, बबूल छाल नीम पत्ती व मेहंदी के पत्ते समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर गरारे करना भी अत्यधिक लाभकारी है।
- पेट मे कब्ज़ न रहे इसके लिए आरोग्य वर्धनी वटी 2 गोली, कैशोर गुग्गुल 2 गोली दिन में दो बार मंजिष्ठादिक्वाथ से सेवन करें।
या स्वर्णमाक्षिक भस्म 250 मिलीग्राम , प्रवाल भस्म 250 मिलीग्राम, कामदुधा रस 250 मिलीग्राम दिन में 3 बार शहद के साथ लें। भोजन के बाद मंजिष्ठादि क्वाथ या मंजिष्ठाद्यासव 4 ढक्कन लें।
यह औषधियाँ क्योंकि आयुर्वेदिक हैं अतः कम से कम 40 दिन नियमित रुप से सेवन करें।रोग के पूर्ण निवारण के लिए चिकत्सक से सलाह लें।
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