एक आवारा शायर ही यह बात कह सकता है – शायरी की दुकान भाग-1
शायरी 1
सरे बाज़ार निकलूं तो आवारगी की तोहमत,
तन्हाई में बैठूं तो इल्जाम-ए-मोहब्बत.
ना शाखों ने पनाह दी,ना हवाओ ने बक्शा,
वो पत्ता आवारा ना बनता तो क्या करता.
शायरी 2
राज़ खोल देते हैं नाजुक से इशारे अक्सर,
कितनी खामोश मोहब्बत की…