नपुंसकता के कारण व उपाय
मनुष्य स्त्री से मैथुन की इच्छा तो करे, किन्तु इन्द्रिय की कमजोरी के कारण कर न सके, इस शारीरिक स्थिति को क्लैब्य (नपुंसकता) कहते हैं !
पुरुष के हृदय को अप्रिय (जिनसे उसे नफरत हो) स्थितियों, भय, शोक, क्रोध आदि से चित्त दुखित होने से लिंग में शिथिलता हो और संसर्ग की इच्छा न हो, उसे नपुंसक कहते हैं !
यह सात प्रकार की होती है !
1. जिस पुरुष को मैथुन के विषय में चर्चा बुरी लगे, उसे मानस क्लीब कहते हैं !
2. मिर्च, खटाई, नमक आदि पित्तकर्ता पदार्थों का अत्यधिक सेवन करने से पित्त बढ़ कर वीर्य को बिगाड़ देता है ! इससे वीर्य क्षीण होकर नपुंसकता की स्थिति हो जाती है !
3. यदि मनुष्य मैथुन अधिक करे और वीर्य की वृद्धि करने वाली बाजीकरण औषधि का सेवन नहीं करे, तो वीर्य के क्षीण होने से इन्द्रिय शिथिल हो जाती है ! इसे शुक्रक्षयज नपुंसक कहते हैं !
4. जो मनुष्य प्रमादवश लिंग को बड़ा करने वाली औषधि का सेवन करते हैं, उससे लिंग बड़ा होने के कारण चौथी नपुंसकता होती है !
5. पांचवीं नपुंसकता वीर्यवाही नस कट जाने और दारुण प्रमेह आदि रोगवश भी प्राप्त होती है !
6. यदि बलवान मनुष्य खिन्न मन होकर ब्रह्मचर्य से वीर्य रोक ले, यह वीर्य स्तम्भ निमित्तिक छठी नपुंसकता है !
7. जो पुरुष जन्म से ही नपुंसक हो उसे सहज नपुंसक कहते हैं !
नपुंसकों की चिकित्सा
यह एक सामान्य नियम है कि नपुंसकता का जो कारण है, मनुष्य को उसके विपरीत आचरण करने के निर्देश दें यानी जिस कारण से रोग हुआ है, उसे त्याग देना चाहिए ! नुकसान की भरपाई के लिए वस्तिकर्म करें, दूध, घी, पुष्टिकारक पदार्थ और रसायन आदि का सेवन करें ! साथ ही, औषधि और काल (समय) को जानने वाला वैद्य देह-दोष और अग्नि का बलाबल (बीमारी की प्रबलता और रोगी की दवा को पचाने की क्षमता) देख कर नपुंसकता को नष्ट करने वाले उपाय करे !
अब इस सूत्र में कुछ ऐसे चूर्ण बनाने की विधियां प्रस्तुत की जाएंगी, जो वीर्य को शुद्ध करने, बढ़ाने, शुक्र की क्षीणता को नष्ट करने के साथ प्रमेह (महिलाओं का श्वेत प्रदर) आदि घोर व्याधियों को नष्ट करके आयु तथा आरोग्यता को बढ़ाने वाली औषधियां हैं ! इन्हें तैयार करते समय दो बातें विशेषकर याद रखें – जहां-जहां कपड़छन का प्रयोग हो, वहां यह ध्यान रखें कि दवा को छानने वाला वस्त्र रंगहीन और एकदम शुद्ध हो (या तो धुला हुआ अथवा कोरा सूती) ! दूसरी बात- सभी औषधियों को खरल अथवा सिल-बट्टे पर ही बारीक करें, मिक्सी का प्रयोग करने की भूल कदापि न करें, यदि आप ऐसा करेंगे, तो औषधि का सम्पूर्ण तेज़ नष्ट हो जाएगा यानी वह शक्ति रहित हो जाएगी ! तीसरी बात, इस पिसे हुए पदार्थ अथवा चूर्ण का संबोधन कई जगह आपको रज अथवा क्षोद भी मिल सकता है, अनुवाद करते समय अक्सर यह स्मरण नहीं रहता कि अब तक हम किस शब्द का उपयोग करते आए हैं, अतः ये दोनों शब्द कहीं आने पर उन्हें चूर्ण ही मानें ! यह भी ध्यान रखें कि चूर्ण की सेवन मात्रा सामान्यतया एक तोला बताई गई है, किन्तु इससे अधिक किसी कुशल वैद्य के निर्देशन में ही सेवन करें, अन्यथा आप दस्त, उल्टी अथवा अन्य विकारों का शिकार हो सकते हैं ! धन्यवाद !
सितादिवृष्य योग
मिश्री चार सौ तोला, गाय का शुद्ध घी 64 तोला, बिदारी कंद 64 तोला, पिप्पली का चूर्ण 128 तोला, उत्तम शहद 128 तोला लेकर सभी को मिला लें और चिकनी मिट्टी से बने बर्तन में रखें ! अपनी पाचन शक्ति के अनुसार प्रतिदिन सुबह खाएं ! यह योग परम वृष्य (वीर्य को शुद्ध करने और बढ़ाने वाला) तथा शरीर के सभी रसों और धातुओं को पुष्ट (बलवान) करने वाला है !
पुरुषार्थ दायक वस्ति कर्म
जीवंती, अतिबला, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, दोनों तरह का जीरा, हरड, पीपड, काकनासा, वायविडंग, कौंच के बीज, पुनर्नवा अथवा कचूर, काकड़ासिंगी, जीवक, ऋषभक, दोनों तरह के सारिवा, सहचर, वीयावांसा, त्रिफला, सोंठ, पिप्पली मूल – इन सभी को समान भाग लेकर चूर्ण करके पहले थोड़े घी में भून लें ! इसके बाद घी अथवा तेल या तेल और घी दोनों के मिश्रण में इस कल्क को मिलाएं और तेल-घी से आठ गुना दूध डाल कर पकाएं ! इसके द्वारा अनुवासनवस्ति देने से वीर्य की, जठराग्नि की और बल की वृद्धि होती है ! सिद्ध किया हुआ यह तेल पुष्टिकारक तो है ही, साथ ही वात, पित्त का नाश करता है तथा गुल्म और अफारा को पूरी तरह नष्ट कर देता है ! इसको यदि नासिका से अथवा पीकर सेवन किया जाए, तो यह सर्दी तथा कफ से जनित सभी रोगों को समूल नष्ट कर देता है !
योग्य दूध
ऎसी पालतू गाय जिसने पहली बार बच्चा पैदा किया हो, उसे उड़द के पत्ते नित्य खिलाएं ! इस गाय का दूध पीने से बल और वीर्य में आशातीत बढोतरी होती है !
मधुयष्टीचूर्णम
मुलहठी के एक तोला चूर्ण में छः मासा शुद्ध देशी घी और एक तोला शहद मिला कर चाट लें ! इसके बाद इच्छा के अनुसार मिश्री मिला गर्म दूध पिएं ! यह प्रयोग नित्य करने वाला मनुष्य सदैव वीर्य के वेग से युक्त रहता है अर्थात उसकी कामेच्छा कभी क्षीण नहीं होती !
अश्वगंधादि चूर्णम
असगंध नागौरी और विधारा 40-40 तोला लेकर बारीक चूर्ण बना लें। फिर इसमें बराबर मात्रा की मिश्री मिला कर रख लें। इसमें से प्रतिदिन दो तोला चूर्ण गर्म अथवा धारोष्ण दूध के साथ सेवन करें, तो धातु पुष्ट होकर मनुष्य स्त्री से रमण में कभी न थकने की शक्ति प्राप्त कर लेता है।
मूसल्यादि चूर्णम
काली मूसली, तालमखाना और गोखरू क्रम से एक, दो और तीन भाग (यथा काली मूसली तीन तोला, तालमखाना छः तोला और गोखरू नौ तोला) लेकर इनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को प्रतिदिन सुबह मिश्री मिले गर्म दूध के साथ छह माशा खाएं। यह प्रयोग इक्कीस दिन करने वाला सौ वर्ष का बूढा व्यक्ति भी स्त्री से नौजवान की तरह संसर्ग में सक्षम हो जाता है।
द्राक्षासवं
चार सेर मुनक्का को 16 सेर पानी में पकाएं ! जब 4 सेर बाक़ी रह जाए, तो उतार लें और फिर इसमें 4 सेर गुड़ और 1 सेर धावे के फूल मिला कर मिट्टी के बर्तन में भर कर करडी में दबा दें ! जब वह सड़ कर उफनने लगे, तो वारुणी यंत्र द्वारा अर्क खींच लें ! फिर उस अर्क को दोबारा वारुणी यंत्र से खींचें ! इस प्रकार इस अर्क को दस बार वारुणी यंत्र से खींचें और फिर चतुर्जात, जावित्री, लौंग, भीमसेनी कपूर, केशर यह सब अनुमान से मिला कर अपनी जठराग्नि का विचार कर सेवन करें, तो यह क्षय, यक्ष्मा (टीबी) को दूर करता है ! इसे चिकने भोजन के साथ सेवन करने से 90 वर्ष का बूढा भी पौरुष पर अभिमान करने योग्य हो जाता है !