Radish farming: मूली एक जड़ वाली सब्जी है। इसका उपयोग कच्चा सलाद, सब्जियां, साग या अचार बनाने के लिए किया जाता है। हमारे देश में साल भर मूली की खेती की जाती है। यह फसल बहुत जल्दी पक जाती है।
पिछले कुछ सालों में देश में मूली की मांग और कीमत में काफी इजाफा हुआ है। किसान (किसान) पहले मूली की खेती को घाटे का व्यवसाय माना जाता था। लेकिन अब इसकी कीमत अन्य फसलों की तरह बाजार में अच्छी है। इससे किसानों को कम समय में अधिक लाभ मिल सकता है। तो आइए इस ब्लॉग में मूली की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं।
Radish farming के लिए आवश्यक जलवायु
मूली की खेती के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। लेकिन कुछ विशेष किस्मों को साल भर लगाया जा सकता है। मूली की फसल के लिए 10 से 15 सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है। तापमान अधिक होने पर इसकी फसल कड़वी और सख्त हो जाती है। इसलिए किसानों ने सर्दियों में ही पौधे लगाने की सलाह दी है। भारत में इसका उत्पादन मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, असम, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में होता है।
मूली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी जड़ के लिए अच्छी मानी जाती है। मूली के बेहतर उत्पादन के लिए जैविक दोमट या बलुई दोमट का प्रयोग करें। मिट्टी का pH मान 6.5 से 7.5 तक होता है। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र या अन्य मृदा परीक्षण केंद्र से मृदा परीक्षण करवाना चाहिए।
जड़ की प्रमुख किस्में
मूली बोने से पहले किसानों के सामने सबसे पहली बात यह आती है कि किस किस्म का चयन किया जाए ताकि बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिल सके।
Radish farming: मूली की कुछ प्रमुख किस्में
पूसा चेतकी
इसकी खेती पूरे भारत में की जा सकती है। एक एकड़ में 100 क्विंटल फसल होती है। गर्मियों में इसकी जड़ें कम तीखी होती हैं। जड़ों की लंबाई 15 से 22 सेमी है। इस किस्म की जड़ सफेद, मुलायम होती है। फसल के उत्पादन में 40 से 50 दिन लगते हैं।
पूसा हिमानी
इसकी जड़ें लंबी, सफेद और कम नुकीली होती हैं। फसल के उत्पादन में 50 से 60 दिन लगते हैं। इसकी बुवाई के लिए सबसे अच्छा महीना अक्टूबर है। मूली की उपज 128 से 140 क्विंटल प्रति एकड़ है।
जापानी सफेद
इस किस्म की जड़ें 15 से 22 सेंटीमीटर बेलनाकार, कम तीखी, चिकनी और स्वाद में हल्की होती हैं। बुवाई का सर्वोत्तम समय 15 अक्टूबर से 15 दिसम्बर है। बुवाई के 45 से 55 दिन बाद कटाई की जा सकती है। मूली की पैदावार 100 से 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
पूसा रेशमी
इसकी जड़ें 30 से 35 सेमी. इसके पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं। इस किस्म की बुवाई मध्य सितम्बर से अक्टूबर तक करनी चाहिए। बुवाई के 55 से 60 दिन बाद फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है।
खेत से प्रति एकड़ 126 से 140 क्विंटल फसल प्राप्त होती है। इसके अलावा, आप जापानी सफेद, पूसा देसी, पूसा चेतकी, अर्का निशांत, जौनपुरी, बॉम्बे रेड, पूसा रेशमी, पंजाब एजेटी, पंजाब सफेद, आई.एच. ऐसी कई उन्नत किस्में भी उपलब्ध हैं। आर-1 और कल्याणपुर सफेद आसानी से पहुँचा जा सकता है। व्हाइट आइस्ले, रैपिड रेड, व्हाइट टिप्स, स्कारलेट ग्लोब और पूसा ग्लेशियर ठंडे क्षेत्रों के लिए अच्छी प्रजातियां हैं।
खेत की तैयारी
मूली की खेती के लिए सितंबर से नवंबर का महीना सबसे अच्छा होता है। बारिश खत्म होने के बाद आप इसे कभी भी कर सकते हैं। खेत को पहले रोटरी हल और 2-3 जुताई मशीनों या स्वदेशी हल से जोतकर जोतना चाहिए। जुताई के समय 200 से 250 क्विंटल सड़ा हुआ गोबर प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए।
बुवाई और बीज उपचार
किसानों के मन में यह भी सवाल होता है कि मूली की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर कितने बीज की जरूरत होती है और बीज को कैसे संसाधित किया जाए। तो हम आपको बता दें कि प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलो मूली के बीज पर्याप्त होते हैं। एक किलो बीज के लिए 2.5 ग्राम थिरम के बीज उपचार का उपयोग किया जा सकता है।
मूली कब और कैसे लगाएं?
मूली की बुवाई के लिए सितंबर-अक्टूबर सबसे उपयुक्त महीने हैं, लेकिन कुछ प्रजातियों को अलग-अलग समय पर बोया जा सकता है। उदाहरण के लिए पूसा हिमानी को दिसंबर से फरवरी तक बोया जाता है। पूसा चेतकी प्रजाति को मार्च से अगस्त के मध्य तक बोया जा सकता है। मूली को मेड़ या फ्लैट स्टीमर में बोया जाता है। लाइन से लाइन या तटबंध से तटबंध तक 45 से 50 सेमी की दूरी। पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सेमी होनी चाहिए। बुवाई 3 से 4 सेमी की गहराई पर करनी चाहिए।
खाद और खाद प्रबंधन
किसान भाइयों को मूली की खेती के लिए खेत तैयार करते समय 200 से 250 क्विंटल सड़ा हुआ गोबर देना चाहिए। साथ ही 80 किलो नत्रजन, 50 किलो फॉस्फोरस और 50 किलो पलाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। फास्फोरस और पलाश की आधी मात्रा बुवाई से पहले दो बार और खड़ी फसल में आधी मात्रा में देना चाहिए। जिसमें नत्रजन की 1/4 मात्रा पौधे की वृद्धि के समय तथा 1/4 मात्रा जड़ की वृद्धि के समय देनी चाहिए।
मूली की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
मूली की फसल में 3-4 पत्तियाँ आने पर सबसे पहले पानी देना चाहिए। मूली को मिट्टी की नमी के अनुसार कम या ज्यादा पानी देना चाहिए। सर्दियों में 10-15 दिनों के अंतराल पर और गर्मियों में साप्ताहिक रूप से पानी दें।
खरपतवार प्रबंधन
मूली की फसल खरपतवार की समस्या है। किसान मित्रों का एक ही सवाल है कि मूली की फसल में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें? तो हम आपको बता दें, पूरी फसल में 2 से 3 बार निराई और गुड़ाई करें। एक बार जब जड़ें बढ़ने लगें, तो किनारों को एक बार फिर से दें। खरपतवार नियंत्रण के लिए 3.3 लीटर पेंडामेथालिन को 600 से 800 लीटर पानी में बिजाई के तुरंत बाद 2 से 3 दिनों के भीतर स्प्रे करें।
संक्रामक रोग और उनका नियंत्रण
मूली की फसल में सफेद रतुआ, सर्कोस्पोरा कैरोटिड, पीला झुलसा, अल्टरनेरिया लीफ ब्लाइट, पाउडर फफूंदी लगने की संभावना होती है। इनके नियंत्रण के लिए फफूंदनाशक डाइथेन एम45 या जेड78 के 0.2% घोल का छिड़काव करें। बीज पर 0.2% बाइटेक्स का छिड़काव करना चाहिए। पीले झुलसा नियंत्रण के लिए इंडोसेल @ 2 मिली प्रति लीटर या इंडोधन @ 2 मिली प्रति लीटर का छिड़काव करें।
कीट नियंत्रण
किसान भाई मूली की फसल पर बीमारियों के साथ-साथ कीट भी दिखाई दे रहे हैं। मूली में मनहू, मूंग, बालों वाला कीड़ा, आधा गोल कृमि, चूरा, डायमंड बैक्टम कीट पाए जाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए मैलाथियान 0.05% तथा 0.05% डाइक्लोरवास का प्रयोग करें। थियोडन, इंडोसेल @ 1.25 लीटर/हे. स्प्रे। 10% बीएचसी या आप 4% कार्बोरोल पाउडर भी छिड़क सकते हैं।
कटाई और विपणन
किसान भाइयों, जब खेत में मूली की जड़ें कटाई के लिए यानि बुवाई के 45 से 50 दिनों के बाद खाने योग्य हो जाती हैं, तो जड़ों को सुरक्षित रूप से हटाकर साफ कर बाजार में बेच देना चाहिए। मूली की जल्दी बुआई करने से किसानों को अधिक आमदनी होती है।
इसके अलावा मूली को प्रोसेस करने के बाद आप खुद का सलाद और अचार बनाकर बाजार में बेच सकते हैं, जिससे आपको ज्यादा मुनाफा होगा। अंत में किसान अपने दोस्तों से कहना चाहता है कि वे सह-फसल के रूप में मूली की खेती करें, ताकि आप भी उसी जमीन पर मूली की खेती से लाभ उठा सकें।