मिलिए हमारे भारत देश के 5 खूंखार डाकुओं से, जिनके नाम से कांपती थी पुलिस
रोचक बातें:- अक्सर हम पुरानी फिल्मों में डाकुओं को देखते हैं तो हमें यही लगता है कि यह केवल फिल्म है बाकी ऐसा कुछ नहीं है लेकिन आपको बता दूं कि एक समय था, जब हमारे देश के कई हिस्सों में डाकुओं का राज़ था. इन डाकूओं का आतंक लोगों के दिलों में बना हुआ रहता था.
डाकू हत्या करने, लूट मचाने जैसी वारदातों को अंजाम दिया करते थे. आज की यह पोस्ट आप सभी के लिए बेहद खास होने जा रही है क्यूंकि इस पोस्ट में हम आपको हमारे देश के 5 खूंखार डाकुओं से मिलवाने जा रहे हैं, जिनके नाम से पुलिस भी कांपती थी.
फूलन देवी
फूलन देवी एक ऐसी डाकू थी, जो ऐसे माहौल में पली नहीं थी लेकिन उनके पास कुछ ऐसी मजबूरियाँ आ गयी, जिसकी वजह से उन्हें डाकू बनना पड़ा. फूलन देवी के ज़िंदगी पर कई डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाई गई. 1980 के दशक के शुरुआती दिनों में चंबल की सबसे खतरनाक डाकू के रूप में जानी जाती थी. इनके डकैत बनने की पीछे की कहानी लोगों के रोंगटे खड़े कर देने वाली है.
सुल्ताना डाकू
ब्रिटिश सरकार के वक़्त सबसे ज्यादा मशहूर सुल्ताना डाकू ही थे, इनको गरीबों का मसीहा भी माना जाता था. लेकिन दहशत ऐसी की किसी की भी हिम्मत नहीं होती उनके सामने सर उठाने की.
निर्भय सिंह गुज्जर
एक समय 40 गावों में निर्भय सिंह गुज्जर ने अपनी धाक जमा रखी थी. सरकार ने उसके ऊपर 2.5 लाख रुपये का इनाम भी रखा था. 2005 में मुठभेड़ में उसे मार दिया गया.
मान सिंह
मान सिंह ने साल 1935 से लेकर 1955 के बीच तकरीबन 1,112 डकैती को अंजाम दिया था. उसने 182 हत्यांए की जिसमें 32 पुलिस अधिकारी भी शामिल थे. साल 1955 में सेना के जवानों ने मान सिंह और उसके पुत्र सूबेदार सिंह की गोली मारकर हत्या की दी थी.
वीरप्पन
डाकू वीरप्पन का नाम तो आपने सुना हीं होगा. बेहद खतरनाक आपराधिक किस्म का, व्यक्ति कहना तो जैसे गुनाह हीं है, क्योंकि ये डाकू इतना खतरनाक था कि इसके दहशत से इलाके के लोग थर-थर कांपते थे. पुलिस भी इसके आस-पास भटकने से कतराते थे. तमिलनाडु और केरल के जंगलों में वीरप्पन ने अपना पूरा दबदबा बना रखा था. 1970 से डाकू वीरप्पन ने अपने आपराधिक कारनामों को अंजाम देने की शुरुआत की थी. और पहली बार 1972 में गिरफ्तार हुआ था.
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